ये किसानो की है हकीक़त क्या बात
आदमी मे आदमीयत क्या बात है
हर-एक की नेक नीयत क्या बात है
साकी ने शराब मे क्या शै मिला दी
वाएज़ को भी दी नसीहत क्या बात है
बदमिजाज़ हुवा शहर नए दौर के नाम पे
संस्कृति की ये फजीहत क्या बात है
माँ-बाप भगवान सामान यहाँ और
पत्थरों मे भी अकीदत क्या बात है
भूख खाते है और प्यास पीते है"मीत"
ये किसानो की है हकीक़त क्या बात है
कवि: रोहित कुमार "मीत" जी की रचना