मेरी तनहाई...
मेरे पास है बस मेरी तनहाई
बस इसी ने ही दोस्ती निभाई।
जब छोड रही थी मुझे मेरी परछाई
तब इसी ने आकार हिम्मत बंधाई।।
है पास मेरे मेरी तन्हाई
फिर किसी से रखु कैसी रुसबाई।
चन्द लम्हो में सारा जहाँ लुट गया
एक दौलत बची वो थी तनहाई।।
भूल बैठे थे हम इस हसी दोस्त को
पर चुप रह कर भी जो साथ चली वो थी मेरी तन्हाई ।
भरोसा है मुझे जब कोई साथ न होगा
तब साथ देगी मेरा मेरी तनहाई।।
तू अगर साथ है तो फिर कैसी रुसबाई
बस एक तू ही मेरे मन को है भाई।
संग चलती है मेरे खामोश रह कर
किस कदर शुक्रिया अदा करु मैं अदा मेरी तनहाई ।।
4 टिप्पणियाँ:
आपकी हाल फिलहाल की तमाम रचनाओं में असंतेष और निराशा की झलक दिखाई पड़ती है। वैसे लेखन अच्छा है। पुरानी रचनाएं भी पढ़ी .. कमाल की है.... लिखते रहिए..क्योंकि जिस दिन कलम रुक गई.. हमारा मानसिक विकास रुक जाएगा... सस्नेह... धन्यवाद
बहुत सुन्दर मनोभाव...
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तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
bahut badhiya..
tanhai ko aapne bahut hi achche dang se prastut kiya hai..
apki buddhi ne achha vyayam kiya hai tanhai ko mitra batane ke liye...Likhte rahiye...
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