संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

सोमवार, 30 मार्च 2009

लङकियाँ बेवफा नही होती

वो तो मजबूरियों में लिपटी हैं !
अपने शिद्दत भरे ख्यालों में !
अपने अन्दर छुपी एक औरत में !
वो हमेशा ही ङरती रहती हैं ...
न तो जीती हैं न तो मरती हैं ...
लेकिन लङकियाँ बेवफा नही होती......!!!

पर हमेशा ही ङरती रहती हैं ...
अपने रीति और रिवाजो से ...
आने वाले नये अंजामो से चुपके से
खिले गुलबो से प्यार करती हैं और छपती हैं !
लङकियाँ बेवफा नही होती ......!!!

क्योकि मजबूरियों में लिपटी हैं ...
और हर लम्हा ङरती रहती हैं ...
अपने प्यार से अपने साये से ...
अपने रिश्तों से दिल की धड़कन से
अपनी ख्वाहिश से अपनी खुशियों से !
लङकियाँ बेवफा नही होती .......!!!

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शनिवार, 28 मार्च 2009

कदम उठाने से पहले

सोच समझ लेना कदम उठाने से पहले....

कहीं खो न जाओ मंज़िल आने से पहले....

मुखलिस दोस्त से महरूम हो न जाओ कहीं....

ये सोच लेना उसे आज़माने से पहले....

तुम्हारे सीने में भी दहकता है एक दिल....

ये सोच लेना किसी का दिल दुखने से पहले....

उमर भर कौन किस के लिये रोता है....

लोग सिर्फ आंसू बहते है दफ़नाने से पहले....!!

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शुक्रवार, 27 मार्च 2009

मैं चाहती हूँ

इन अश्कों को छुपना चाहती हूँ
तेरे याद को दिल से मिटाना चाहती हूँ ।

तुझे देख कर जो मुझे अहसास होता है
मैं उस से अब पीछे छुड़ाना चाहती हूँ ।

तुम्हारी यादों से तुम्हारी बातों से
अब में बहुत दूर जाना चाहती हूँ ।

खयालो की दुनिया से ख्वबो की दुनिया से
अब में बाहर निकालना चाहती हूँ ।

थक गई हूँ इन कांटों भरी राह पे चलते चलते
अब में कुछ दैर आराम करना चाहती हूँ ।

पर कैसे भला दूँ ए दिल_ए_नादान उस को
जिसे मैं इतना चाहती हूँ........

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देखा जब हमने

देखा जब हमने आसमान को तो अफ़साने बदल जाते है
सोचता हूँ एक हसीन शाम तो सितारे बदल जाते है
राह पे बैठे थे हम नज़रे बिछाये किसीकी
पर वो है कि कम्बक्त रास्ते बदल जाते है

याद आती है उनकी आँसू भी आती है पलको पर
पर हर सुबह की शुरुआत मे इरादे बदल जाते है
दिल की आरजू है वो भी कभी चुप के से देखे हमे
पर उनकी हर अदा मे उनके इशारे बदल जाते है

रखा था हमने उनको दिल के करीब बहुत करीब
पर वो आते ही नही यह ज़माने बदल जाते है
कहते है इंतज़ार एक मलहम है दर्द-ए-दीवानगी का
पर कभी कभी इंतज़ार में दीवाने बदल जाते है

अगर तकनी ही है राह किसी की तो
मौत का तको बेवफा नही वो उस ज़ालिम का तरह
पर फिर भी कुछ कह नही पाते
ज़ालिम दुनिया मे तो ज़नाजे तक बदल जाते है

देखा जब हमने आसमान को तो अफ़साने बदल जाते है
सोचता हूँ एक हसीन शाम तो सितारे बदल जाते

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बुधवार, 25 मार्च 2009

आशिकी

आशिकी में बहुत जरूरी है,
बेवफ़ाई कभी कभी कर ली।

तुम मोहब्बत को खेल कहते हो,
हम ने बरबाद ज़िन्दगी कर ली।
उस ने देखा बडी इनायत से,
आंखों आंखों में बात भी कर ली।

आशिकी में बहुत जरूरी है,
बेवफ़ाई कभी कभी कर ली।

हम नही जानते चिरगो ने,
क्यों अंधेरों से दोस्ती कर ली।
धड़्कनें दफ़न हो गयी होंगी,
दिल में दीवार क्यों खाड़ी कर ली?

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बाँकी

बुझ गये दीपक सभी,
नयनो की ज्योति बाँकी है .....
बादल तो गरज कर बरस चुके,
नयनो के सावन बाँकी है.....
जमाने के ताने तो कब के हो चुके,
खुद का होश में आना बाँकी है ......
है दिल के अरमान कब के टूट चुके,
बस मेरा मिट्टी में मिल जाना बाँकी है .......!!!!!!

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जी चाहता है

आज फिर उन का दीदार करने को जी चाहता है
आज फिर उन से प्यार करने को जी चाहता है
रहते तो हैं वो दूर हमसे
आज फिर उन के पास जाने को जी चाहता है

कितनी शिद्दत है चाहत की प्यास में
आज फिर पी कर मारने को जी चाहता है
मत पूछ कितनी मुश्किल से गुज़रते हैं दिन और रात
आज फिर उन की बाहो में जाने को जी चाहता है
आज फिर उन का दीदार करने को जी चाहता है

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मंगलवार, 24 मार्च 2009

मतलबी हैं लोग

सबको अपना माना तूने मगर ये न जाना…
मतलबी हैं लोग यहाँ पर मतलबी ज़माना
मतलबी हैं लोग यहाँ पर मतलबी ज़माना
सोचा साया साथ देगा निकला वो भी बेग़ाना
खुशियाँ चुरा के गुज़रे वो दिन
काँटे चुभा के बिछड़े वो दिन
आंखों से आंसू बहने लगे
बहते ही आंसू कहने लगे
ये क्या हुआ ये क्यूँ
हुआ कैसे हुआ मैने न जाना
मतलबी हैं लोग यहाँ पर मतलबी ज़माना
आपनो में मैं बेग़ाना बेग़ाना
ज़िन्दा है लेकिन मुर्दा ज़मीं है
जीने के काबिल दुनिया नही है
दुनिया को ठोकर क्यूँ न लगा दूँ
खुद अपनी हस्ती क्यूँ ना मिटा दूँ
जी के यहाँ जी भर गया
दिल अब तौ मारने के ढूडे बहाना
मतलबी हैं लोग यह पर मतलबी ज़माना
सोचा साया साथ देगा निकला वो भी बेग़ाना

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प्यार

कभी नज़र से गिरा दिया
कभी दिल में बसा दिया
मुहब्बत में तुम ने हमें
कभी हसाया, तो कभी रुला दिया
कभी प्यार बेशुमार किया
कभी दर्द बेन्तेहा दिया
अपनी दीवानगी में तुमने हमें
किस मकाम पर पहुचा दिया
कभी सेहरा में तन्हा कर दिया
दिल को खिलना समझ कर
तुमने हमें हर खेल में हारा दिया
कभी उमीदो को बड़ा दिया
कभी मायूसियौ ने जीना दुशबार कर दिया
फिर भी हमदम हमने तुम्हें
प्यार की हद से भी ज्यादा प्यार किया

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मुझ से तू बार बार

मुझ से तू बार बार यूँ मोहब्बत का इज़हार न कर
न निभा सकूँगा तेरा साथ एतबार न कर !!

मोहब्बत तो होती थी पहली नज़र में
कौन है कहाँ है वो बस यह तकरार न कर !!

मैं राहे मोहब्बत का हुआ मुद्दत से मुसाफ़िर
वापसी का नही है रास्ता मेरा इंतजार न कर !!

भला पहली मोहब्बत को भी किस ने भुलाया है
सच है न यह बात मेरी तू इनकार न कर !!

किसी के नाम है यह मुख्तसिर सी ज़िन्दगी मेरी
मेरी सोचो में न तू हो शामिल मुझे बेकरार न कर !!

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शुभकामना

ज़िन्दगी से तुझे इतना मिले,
कि छोटा पड जाए तेरा ये दामन।

जैसा तूने ज़िन्दगी से चाहा ,
वैसा ही मिल तुझे तेरा साजन।

जैसी भी मिले तुझे ये ज़िन्दगी,
खुशियों से भर दे तू अपना आंगन।

कभी भी न मिल तुझे निराशा,
आशा और उमंगो से भरा हो तेरा हर सावन।

जिस जगह भी तो पैर रखे ,
वो जगह हो जय पवित्र और पावन।

कभी भी न मिले तुझे कोई गम,
आनंदमय बीते तेरा ये ज़ीवन।

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ये वक्त नही रुकता

ये वक्त नही रुकता, सांस रुक जाती है
जीवन तो चलता रहता है, रहे रुक जाती है
ये वक्त नही रुकता.....

वक्त की आँधी में, न जाने कितने रिश्ते बन कर टूट गये
कुछ रहता नही सदा पर यादें रह जाती है
ये वक्त नही रुकता......

जीवन है रेलगाङी की तरह , बस चलता जाता है कुछ रिश्तो को लिये
उसके संग चलते चलते पटरी पीछे रह जाती है
ये वक्त नही रुकता......

ये तन खिलोना माटी का, दुनिया के रंग मंच पर अभिनय करता है
दो पल में ठंडा हो जाता , बस माटी ही रह जाती है
ये वक्त नही रुकता.....

ये वक्त नही रुकता, सांस रुक जाती है
जीवन तो चलता रहता है, रहे रुक जाती है
ये वक्त नही रुकता.....

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सोमवार, 23 मार्च 2009

जुदाई

हम जीने नही देती है
ये गुजारी हुई यादें
हम से भूली नही जाती है
ये बीती हुयी बातें
अब कैसे कहें हम तुम से
ऐ दोस्त तेरी बातें
हम हर पल याद आती है
तेरी छोटी छोटी बातें।

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तपस्या

एक आदमी ने घनघोर तपस्या की
और शिवजी को प्रसन्न कर लिया।
शिवजी बोले - बेटा, मैं तुझसे बहुत खुश हूं।
कोई वरदान मांग ।
भक्त बोला - प्रभु, .....
मुझे एक गिटार दे दो।
गिटार !कैसा गधा है। शिवजी ने सोचा ।
कोई गिटार के लिए भी तपस्या करता है।
बोले - बेटा, तूने बड़ी तपस्या की है।
कुछ बड़ा मांग।
चिन्ता मत कर, सब कुछ मिलेगा।
भक्त बोला - नहीं प्रभु,
मुझे तो सिर्फ एक गिटार चाहिए
बस !शिवजी समझाने लगे - बेटा, कुछ ढंग का मांग।
मेरी रेपुटेशन का तो खयाल कर।
गिटार भी कोई मांगने की चीज है भला।
परंतु भक्त भी जिद पर अड़ा हुआ था
बोला - नहीं प्रभु,
अगर देना है तो बस गिटार ही दो !
अब शिवजी को गुस्सा आ गया,
बोले - गिटार ! गिटार ! गिटार !
अबे अगर गिटार मेरे पास होता तो
मैं ये डमरू क्यों बजाता फिरता
रचना के बारे में अपनी मह्तबपूर्ण राय बताये ताकि अगली रचना औरभी बहतर हो

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नसीब

तुम जिसे नसीब हो,
यह उसका नसीब होगा!
मेरे नसीब में....
तेरी यादें ही सही,
तू न सही ...
तेरी दी हुई यह यादें ही सही।
तेरी यादों में,
यह सारी जिन्दगी गुजर जायेगी....
इनका कोई डर नही ......
क्यूंकि यह सिर्फ मेरी हैं!!
और यह वादा है .........
यह न कभी तेरी तरह जायेंगी।

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माता-पिता

भगवान के दो रूप निराले,
माता-पिता के नाम वाले।
माता-पिता की क्या बटाऊ महिमा,
इनके प्यार की कोई नही सीमा।
माता पिता है क्षमा की मूर्ति,
इनकी कमी की नही करसकता कोइ पूर्ति।
इन्होने की हमारे लिये अपनी खुशियाँ कुर्बन,
हमे ईश्वर के रूप में करना है इनका गुणगान।
अगर हम लैगे जन्म हज़ार,
तब भी नही चुका सकते इनका ऋण अपार।
जिनको मिल माता -पिता के रूप में भगवान,
संसार की खुशनसीब है वो सन्तान।

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यह वह मौहल्ला है

यह वह मौहल्ला है ....
जहाँ मेरा बचपन बीता !!

यह वह मौहल्ला है .....
जहाँ मेरे नन्हे पाओ ने चलना सीखा !!

यह वह मौहल्ला है ....
जहाँ मैने बारिश का पहली बंद को महसूस किया !!

यह वह मौहल्ला है ....
जहाँ मैने जीवन के हर रिश्ते को निभाना सीखा !!

यह वह मौहल्ला है ....
जहाँ मैने अपने भविष्य को बनते देखा !!

यह वह मौहल्ला है ...
जहाँ मैने अपने लक्ष्य को पाना सीखा !!

यह वह मौहल्ला है ........!!
यह वह मौहल्ला है................!!

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शुक्रवार, 20 मार्च 2009

अब के यू...

अब के यू दिल को सज़ा थी हमने
उसकी हर बात भला थी हमने
एक एक फूल याद आया
जब शाखे गुल जला थी हमने
आज तक जिसपे वो मुस्कराते रहे
बात वो कब की भला दी हमने
आज फिर याद बहुत आया वो
आज फिर उसको दुआ थी हमने
कोई तो बात है उनमे .........
हर खुशी जिसपे लुटा दी हमने

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गुरुवार, 19 मार्च 2009

आप

अब तो हमारी नज़र में...

बस आप के ही चहरा है !!

जहाँ तक नज़र पहुची ....

सबेरा ही सबेरा है !!

आप की दुनिया ही हमारी दुनिया ...

आप की दुनिया में ही अब हमारा बसेरा है !!

सोचा नही था कभी के कुछ यू होगा ...

बस आप के प्यार के चारो तरफ घेरा है !!

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इतना है सपना

इतना है सपना ....
तेरे संग जीना,
तेरी बाहो में मारना !!
इतना सा काम ...
बस तुम्हे प्यार करना ,
तुम्ह पलको पे रखना !!
तुम ही मेरी दुनिया,
तुम ही मेरा अपना ।
पहनू तुम्हे ....
तुम ही मेरा गहना !
तेरा साथ हो तो ...
मुश्किल नही है ....
दुनिया के दर्द सहना !
ये ज़ीवन सफल है ....
तेरा साथ है तो ....
तुम्हारे बिना मुझे नही रहना !
इतना है सपना ....
तेरे संग जीना,
तेरी बाहो में मारना !!

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मंगलवार, 17 मार्च 2009

आशीष !!!

ईश्वर के था आशीष !!!

जो आप पधारे ....

बसुंधरा के आंगन !!

अपनी प्यारी अखियन ...

से मीठी मीठी बतियन से ....

अपनी प्यारी सूरत से ....

अपनी प्यारी मुस्कान से ...

भर दिया माता का दमन ...

ईश्वर के था आशीष !!!

जो आप पधारे ...

बसुंधरा के आंगन ...

भोली सूरत , प्यारा चहरा !!

सब को लागते मनभावन !!

ये दुआ करती हु सदा ...

आप पर गिरता रहे ....

खुशियों का सावन !!

सफलताओ के दीप जलें ....

आप के घर आंगन ....

जो चाहो मिल जय तुम्ह ...

ईश्वर खुशियों से भर ...

दे आप का दमन ...

ईश्वर का था आशीष !!!

जो आप पधारे ....

बसुन्ध्रा के आंगन !!

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इजाज़त दे दो ....

खुद को दिल में बसने की इजाज़त दे दो ...
मुझ को तुम अपना बनाने की इजाज़त दे दो ....
तुम मेरी ज़िन्दगी के एक हसीन लम्हा हो.....
फूलों से खुद को सजाने का इजाज़त दे दो.....
मैं कितना चाहता हूँ किस तरह बताऊ तुम्हैं......
मुझे यह आज बताने की इजाज़त दे दो......
तुम्हारी चाँद सी आंखों मै चाँद सा चेहरा .....
मुझे यह शाम सजाने की इजाज़त दे दो .....
मुझे कैद कर लो अपने दिल में.....
या मुझ खुद कैद होने की इजाज़त दे दो .....

मित्र: जितेन्द्रा राणा की रचना

"रचना के बारे में अपनी मह्तबपूर्ण राय बताये ताकि अगली रचना और भी बहतर "

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ज़िन्दगी

देखो ये ज़िन्दगी है !
लगती कभी अपनी ......
कभी बैगनी ज़िन्दगी है !
हाँ! यही ज़िन्दगी है .....
जो साथ न छोड़ मेरा .....
और साथ भी न दे !
ये कैसी ज़िन्दगी है ?
कभी वो सहेली !
कभी में तनहा अकेली .....
कभी दुश्मन ये ज़िन्दगी है
हाँ ! यही ज़िन्दगी है
हाँ ! यही ज़िन्दगी है


रचना के बारे में अपनी मह्तबपूर्ण राय बताये ताकि अगली रचना और भी बहतर हो

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मंगलवार, 10 मार्च 2009

होली के रंग में मुझे रंग दो ज़रा

होली के रंग में मुझे रंग दो ज़रा !!

नई सी उमंग में मुझे रंग दो ज़रा !!

कल ये पल ये समां हो न हो आज !!

इस पल को मिल कर जीले ज़रा !!

संग हसले ज़रा, दो घड़ी ही सही !!

याद इस पल को हम रखेंगे सदा !!

साथ गालो ज़रा , खुशिया बाटो !!

होली के रंग में मुझे रंग दो ज़रा..........

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सोमवार, 9 मार्च 2009

देखो आई रंग भरी होली

देखो आई रंग भरी होली ,

चारो तरफ़ है खुशियाँ और ठिठोली ,
मानवता फ़िर क्यो लगती है ,

सहमी हुई छोरी ...

कुम्लाह गई है वो ,

निर्मम हाथो में ...

कोई नही सुनता उसकी सिस्कियो की बोली ...

देखो आई होली

चारो तरफ़ है खुशिया और थितोली .........
क्या मिलता है इन आतंकियो को

मानवता को कुचल कर ???

क्यो नही चाहते वो .......इस अमन को ????

क्यो न पसंद है इन्हे अमन और शान्ति .....!!

देखो आई रंग बिरंगी होली

चारो तरफ़ है खुशिया और ठिठोली ...................

कौन है ये ?? कहाँ से आए है ???

है तो इंसानी सकल में ..........

पर ये दरिंदगी कहाँ से सीख आए है ???

क्यो ये मेरा - मेरा करते है

देश धरम सब हमने ही बनाये है .......

क्यो इन मुट्ठी भर लोगो को ये समझ नही आता ...............

बस एक ही धरम है इस दुनिया का

"मानवता"

फ़िर क्यों

ये खून के रंग में नहाये है

देखो आई रंग भरी होली ,

चारो तरफ़ है खुशिया और थितोली ,
एक रंग है परम का .........!!

एक रंग मनाब्ता के अहसास का ......!!

और एकरूप है ईश्वर का

समझो मेरी बात को

भूल के सारी नफरतों और कुंठाओ को

रंग जाओ इस रंग में

देखो आई रंग भरी होली ,

चारो तरफ़ है खुशिया और थितोली !!

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गुरुवार, 5 मार्च 2009

कैसे कहें ??

रूठ गया है ......

मुझको मानने वाला !!

अब कोई नही .........

नाज़ मेरा उठाने वाला !!

पर जाने क्या सोंचता है ?

यह खुला दरवाज़ा .......

शायद ................!!

रास्ता भूल गया, आने वाला !!

माना तेरी नज़र में ........

तेरा प्यार हम नही ।

कैसे कहें के तेरे ....

तलबगार हम नही।

खुद को जला के खाक कर डाला....................

मिटा दिया,

लो अब तुम्हारी राह में ...........

दीवार हम नही!!

जिस को सावरा ...........

हमने हसरतौ के खून से।

गुलशन में उस बाहर के ...........

हक़दार हम नही।

धोखा दिया है ............

खुद को मुहब्बत के नाम से .............!!

कैसे कहें ??

कैसे कहें के ....

के तेरे गुनह्गार हम नही।।

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भगवन कहते है

मेरी कब्र पर खड़े मत हो, और मत रोओ .......

मैं वहाँ नहीं हूँ, मैं वह सोया नहीं हूँ ।।

मुझे लगता है कि मैं हजारो हवाओं के झोको मे हूँ..........!

मैं बर्फ पर बिछा एक बड़ा हीरा हूँ...............!

मैं पके अनाज पर बिखरी चमकती धूप हूँ................!

मैं नम्र शरद ऋतु की वर्षा हूँ.............!

जब आप सुबह उबासी लेते हुए उठते हो .......

तब मैं आप में तेज उत्थान भरने वाला हूँ .............!

चह्चाते हुए पक्षियों की उड़ान की परिक्रमा मे हूँ ..........!

मैं एक चमकता सितारा हूँ जो रात में चमकता है ........... !

मेरी कब्र और रोने को खड़े मत हो !!

मैं वहाँ नहीं हूँ.............!!

मैं मरना नहीं था!!!!!

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मंगलवार, 3 मार्च 2009

मन मंद मंद मुसकाया

*******
तेरा सपना आंखो में रहे !
तेरे बातैं कानो में घुले !
लगता है तू मेरी छाया ...
आंखो में है तू ही समाया .....!!
मन मंद मंद मुसकाया ........................

कल तक तो तुम्ह जाना न था !
था अब तक तो तुम्ह पहचाना न था !
फिर कैसे तू मुझ में समाया .....
जन्मो का रिश्ता बनाया .....!!
मन मंद मंद मंद मुसकाया ...................

मुझे अब तक समझ न आया !
जाने न नज़र, पहचान जिगर !
ये कौन जिगर पर छाया .....!!
मन मंद मंद मुसकाया.......

सपना भी लगे, अपना भी लगे !
किस का है ये सुंदर साया ......!!
मन मंद मंद मुसकाया.....................
आंखो में है तू ही समाया .................
******

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