संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

मंगलवार, 1 सितंबर 2009

पूछता रहता है क्या

ये परिंदा इन दरख्तों से, पूछता रहता है क्या,
ये आसमां की सरहदों में, ढूंढता रहता है क्या.
जो कभी खोया नहीं, उसको तलाश करना क्या,
इन दरों को पत्थरों को, चूमता रहता है क्या.
खोलकर तू देख आँखें, ले रंग ख़ुशी के तू खिला,
गम को मुक़द्दर जान के, यूँ ऊंघता रहता है क्या.
कोई मंतर नहीं ऐसा, जो आदमियत जिला सके,
कान में इस मुर्दे के, तू फूंकता रहता है क्या.
आएँगी कहाँ वो खुशबुएँ, अब इनमें 'मशाल',
दरारों में दरके रिश्तों की, सूंघता रहता है क्या.

कवि : दीपक 'मशाल' जी की रचना

23 टिप्पणियाँ:

उम्मीद 1 सितंबर 2009 को 12:08 pm बजे  

दीपक 'मशाल' जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन

निर्मला कपिला 1 सितंबर 2009 को 12:39 pm बजे  

आएँगी कहाँ वो खुशबुएँ, अब इनमें 'मशाल',
दरारों में दरके रिश्तों की, सूंघता रहता है क्या.
बहुत सुन्दर रचना है मशाल जी को बधाई आपका शुक्रिया

शारदा अरोरा 1 सितंबर 2009 को 3:39 pm बजे  

पहली दो पंक्तियाँ बहुत सुन्दर
ये परिंदा इन दरख्तों से, पूछता रहता है क्या,
ये आसमां की सरहदों में, ढूंढता रहता है क्या.
, और बाद valee ये पंक्तियाँ भी
आएँगी कहाँ वो खुशबुएँ, अब इनमें 'मशाल',
दरारों में दरके रिश्तों की, सूंघता रहता है क्या

Unknown 1 सितंबर 2009 को 4:52 pm बजे  

वाह.........
उम्दा एहसास...
उम्दा शे'र
उम्दा ग़ज़ल.......
जो कभी खोया नहीं, उसको तलाश करना क्या,
इन दरों को पत्थरों को, चूमता रहता है क्या।
___बधाई !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 1 सितंबर 2009 को 5:02 pm बजे  

ये परिंदा इन दरख्तों से, पूछता रहता है क्या,
ये आसमां की सरहदों में, ढूंढता रहता है क्या.

दीपक मशाल की गज़ल के सभी शेर बढ़िया है।
आभार!

Vinay 1 सितंबर 2009 को 5:25 pm बजे  

बहुत बढ़िया है!

Udan Tashtari 1 सितंबर 2009 को 7:49 pm बजे  

खोलकर तू देख आँखें, ले रंग ख़ुशी के तू खिला,
गम को मुक़द्दर जान के, यूँ ऊंघता रहता है क्या.

-लाजबाब!! वाह!

दीपक 'मशाल',  1 सितंबर 2009 को 7:57 pm बजे  

मैं बता नहीं सकता की आप सबके प्रोत्साहन से कितना संबल और कितनी प्रेरणा मिलती है अच्छे से अच्छा लिखने की.
हरबार आपका कर्जदार हो जाता हूँ.

Mithilesh dubey 1 सितंबर 2009 को 9:14 pm बजे  

बहुत सुन्दर रचना,। बधाई

Ravish tiwari 1 सितंबर 2009 को 11:34 pm बजे  

मै आप के लेखन पर टिप्पणी करने के लिए अभी बहुत छोटा हूँ, पर इतना कहूँगा: क्या खूब लिखा है,
मुझे भी कोई परिंदा बना दो,
कैद कर रखा है मुझे सरहदों ने,
आके मुझे कोई आजाद करा दो...
मुझे भी कोई परिंदा बना दो,

Dhiraj Agrawal,  2 सितंबर 2009 को 1:54 am बजे  

mashal sahab aajkal ek se badhkar ek gazal pesh kar rahe hain. badhai sweekar karen aur gargi ji ko bahut bahut shukriya

कपिल देव,  2 सितंबर 2009 को 1:58 am बजे  

दीपक 'मशाल' जी की एक और शानदार ग़ज़ल, लाजवाब.

आदित्य शर्मा 'विकल',  2 सितंबर 2009 को 2:02 am बजे  

एक-एक शेर बहुत खूबसूरत है, न सिर्फ बात और भावना अच्छी है बल्कि प्रस्तुतीकरण भी सुन्दर है. बधाई.
आदित्य शर्मा 'विकल'

vandana,  2 सितंबर 2009 को 4:01 am बजे  

अच्छी ग़ज़ल है.
वंदना मिश्रा

वंदना मिश्रा,  2 सितंबर 2009 को 4:01 am बजे  

अच्छी ग़ज़ल है.

Ravi Taneja,  2 सितंबर 2009 को 4:05 am बजे  

behatreen rachna.
Ravi Taneja
U.K.

Ravi Taneja,  2 सितंबर 2009 को 4:05 am बजे  

behatreen rachna.
Ravi Taneja
U.K.

सर्वत एम० 2 सितंबर 2009 को 8:46 am बजे  

दीपक जी आपकी यह और पिछली रचना पर मैं आज शाम या कल, जब भी अवसर मिला कुछ कहना चाहूँगा. यार थोड़ा समय का अभाव रहता है. आप आज-कल में कमेन्ट बॉक्स चेक कर लीजियेगा, संभव हो तो अपनी मेल आई. डी. भेज दें ताकि आप को बता सकूं.

Dipak 'Mashal',  2 सितंबर 2009 को 12:09 pm बजे  

Sarwat ji can you please contact me at mashal.com@gmail.com. I did try to catch you but could not get your email i.d. opened.
Regards.

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