धुँआ-धुँआ सा नज़र आया सब
धुँआ-धुँआ सा नज़र आया सब,
उसने मुझको था ठुकराया जब.
इतना बेबस के जैसे खूँ ही नहीं,
गिरे बदन को जमीं से उठाया जब.
सब अधूरा सा नज़र आया था,
चाँद कोरा सा ख्वाब लाया जब.
रंग फूलों का हो गया काफुर,
कितना फीका सा शफक छाया तब.
कवि: दीपक "मशाल" जी की रचना
7 टिप्पणियाँ:
बेहद सुन्दर भाव्।
वाह !!
bahut sundar prastuti
धुँआ-धुँआ सा नज़र आया सब,
उसने मुझको था ठुकराया जब...बहुत खूब....
nice blog...
awesome!
bahut acchi abhivyakti....aapke blog par aakar accha laga...
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