संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

सोमवार, 26 जुलाई 2010

वो आत्मा का प्रतिविम्ब गहरा है ........!!

मेरी हर बात का ......., उन्हे ख्याल रहता है ........!!
हर आंसू और हसी का......., हिसाब रहता है ........!!
पूजती हुँ मैं उन्हे ......., वो मन मंदिर में रहता है ........!!
मैं चुप से खो गई उनमे......., वो मुझ को ढूँढा करता है ........!!
वो मेरी सांस है ......., मुझी में सांस लेते है ........!!
मैं उनकी ज़िन्दगी ......., वो ज़िन्दगी के साथ रहता है ........!!
ये कैसा दौर है......., कहाँ आ कर ये वक्त ठहरा है ........!!
उन्ही की बात है......., हर बात पर बस उनका पहरा है ........!!
मैं उनकी आत्मा ......., वो आत्मा का प्रतिविम्ब गहरा है ........!!
.......!! .......!! .......!! .......!! .......!! .......!! .......!! .......!! .......!! .......!!

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शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

धुँआ-धुँआ सा नज़र आया सब

धुँआ-धुँआ सा नज़र आया सब,
उसने मुझको था ठुकराया जब.
इतना बेबस के जैसे खूँ ही नहीं,
गिरे बदन को जमीं से उठाया जब.
सब अधूरा सा नज़र आया था,
चाँद कोरा सा ख्वाब लाया जब.
रंग फूलों का हो गया काफुर,
कितना फीका सा शफक छाया तब.

कवि: दीपक "मशाल" जी की रचना

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