कतरा कतरा
यूँ मेरा जिन्दगी भी जीना कतरा कतरा
यूँ तेरे लिए जहर भी पीना,, कतरा कतरा
चोट खाकर मेरा यूँ खामोश रहना
यूँ मेरा जख्म भी सीना ,,कतरा कतरा
तुमसे मोहब्बत हमें और छुपाना तुमसे
ये माथे पे मेरे पसीना ,,कतरा कतरा
तुम्हे पाने की ख़ुशी और डर मेरा ये
चाँद सा डर ये नगीना ,,कतरा कतरा
खोने की वजह नहीं कोई और वहम ये
आँखों की बारिश का महीना ,,कतरा कतरा
खामोश हूँ इन बातों से क्या
मुझे है यूँ ही जीना ,,कतरा कतरा
कवि : "अजीत त्रिपाठी जी" की रचना
8 टिप्पणियाँ:
अजीत जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
sundar....
सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!
खूबसूरत पंक्तियां हैं । बहुत ही सुंदर रचना
gargi ji...
shukriyaa aapka share karne ke liye....
सुंदर अभिव्यक्ति ,शुभकामनायें
खूबसूरत रचना...
dhanyawaad
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