संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

मंगलवार, 22 जून 2010

कतरा कतरा

यूँ मेरा जिन्दगी भी जीना कतरा कतरा
यूँ तेरे लिए जहर भी पीना,, कतरा कतरा

चोट खाकर मेरा यूँ खामोश रहना
यूँ मेरा जख्म भी सीना ,,कतरा कतरा

तुमसे मोहब्बत हमें और छुपाना तुमसे
ये माथे पे मेरे पसीना ,,कतरा कतरा

तुम्हे पाने की ख़ुशी और डर मेरा ये
चाँद सा डर ये नगीना ,,कतरा कतरा

खोने की वजह नहीं कोई और वहम ये
आँखों की बारिश का महीना ,,कतरा कतरा

खामोश हूँ इन बातों से क्या
मुझे है यूँ ही जीना ,,कतरा कतरा

कवि : "अजीत त्रिपाठी जी" की रचना

8 टिप्पणियाँ:

उम्मीद 22 जून 2010 को 1:56 pm बजे  

अजीत जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 22 जून 2010 को 3:24 pm बजे  

सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!

अजय कुमार झा 22 जून 2010 को 3:47 pm बजे  

खूबसूरत पंक्तियां हैं । बहुत ही सुंदर रचना

Sunil Kumar 22 जून 2010 को 7:49 pm बजे  

सुंदर अभिव्यक्ति ,शुभकामनायें

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