तुम्ही विस्तार हो मेरा
और उस जमीं के सर का,
तुम्ही विस्तार हो मेरा.
कैसे?
हाँ कैसे..........हो मेरा.
तुम्हारे ही सपनों के तिनकों से,
मैंने नींव रखी है
अपने घोंसले की,
और तुम्हारी आँखों की चमक से
मिलती है
खुराक हौसले की.
वर्ना ठूँठ पे,
हाँ पुराने ठूँठ पे
नए घोंसले नहीं बनते,
बनकर के होंठ मेरे
तुम्ही तो इज़हार हो मेरा.
कैसे?