संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

शुक्रवार, 14 मई 2010

पल दो पल...

पल दो पल... चल साथ चले,
फिर रह जाने... विराने है!!

आज चलो... कुछ ऐसे मिलें,
लोग कहे... दिवाने है!!

तुम संग मिलके... ऐसे जले,
लोग कहे... परवाने है!!

मन में ऐसे... हूक उठे ,
हाथ मिले... छूट जाने है !!

10 टिप्पणियाँ:

Mithilesh dubey 14 मई 2010 को 6:38 pm बजे  

बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति लगी ।

अजय कुमार 15 मई 2010 को 10:23 am बजे  
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अजय कुमार 15 मई 2010 को 10:26 am बजे  

छोटी लाइनों में उम्दा बात ।

पर्वाने को परवाने तथा दिवान को दिवाने कर दीजिये।

उम्मीद 15 मई 2010 को 10:34 am बजे  

ajay ji bhut bhut dhanyabad....isi tarh apne sujhab dete rahiyega
gargi

अर्चना तिवारी 15 मई 2010 को 2:43 pm बजे  

बहुत सुंदर...एक बार और इसमें 'मिल' की जगह 'मिलें ' लिखना चाहती रही होंगी

alfaz 15 मई 2010 को 4:00 pm बजे  

कितना जोश था उन खून की दो बूंदों में, एक दुनिया बनी एक मिट गयी ।
कहतें हैं मिलता हैं सकूँ आपकी महफिल में हम तो जब भी लौट बेकरार ही रहें।
Gullu.

Amit Kumar Sendane 11 जून 2010 को 9:14 pm बजे  

bht hi pyaari prastuti .......shubhkaamnaayein!

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