दुश्मने-जां से भी मिलिए मुस्कुरा करके...
दुश्मने-जां से भी मिलिए मुस्कुरा करके
देखिये सारे शिकवे-गिले को भुला करके
दुश्मने-जां से भी मिलिए मुस्कुरा करके
वफा के बदले अब नहीं मिलती वफा
हमने तो देखा है ये भी तजुर्बा करके
खुशिया भी मिली तो अजनबी बनके
जब से गया वो गम से आशना करके
ख्यालो कि मंजिल कदम-२ पे टकराएगी
देखो किसी कि यादों को रास्ता करके
मिलेगा सुकून कीजिये बेवफाई का गिला
देखिये "मीत" ये भी कभी होंसला करके
कवि : रोहित कुमार "मीत" जी की रचना
5 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर रचना है!
पिछले 6 दशकों को से इसका ही तो
फल भोग रहे हैं!
ek dam sahi baat...
kunwar ji,
खुशिया भी मिली तो अजनबी बनके
जब से गया वो गम से आशना करके waah bahut khoob...
Sundar rachna.....
सुन्दर कविता
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