हम ही पागल हो गये.....
हम ही पागल हो गये ,
परछाइयो के पीछे,
खुशिया आ कर वह गई ,
हम रहे आँख मीचे - मीचे
ज़िन्दगी चलती रही,
एक पल भी न रूकी
हम राह तेरी तकते रहे
आंख भी पत्थरा गई
ज़िन्दगी चलती रही
हम होसला रखते रहे
पल पल युही जलते रहे
चाँदनी के नीचे
भीग लेते हम बहुत
बारिशे बरसी नही
आंख ही भिगोती रही
बिस्तरे का कोना
आस की पलकों से ऐसे
विश्वास तप से गिर गया
कांच का सपना था मेरा
खन से टूटा और बिखर गया
पर आंख में चुभता रहा
हम ही पागल हो गये......
हम ही पागल हो गये......
3 टिप्पणियाँ:
कांच का सपना था मेरा
खन से टूटा और बिखर गया
पर आंख में चुभता रहा
हम ही पागल हो गये.....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
brilliance par excellence..
aafareen...
dard ki gahan abhivyakti hai ye kavita ..shabd chub gaye hai man me ....
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