यहाँ से वहां तक कैसा इक सैलाब है
यहाँ से वहां तक कैसा इक सैलाब है
मेरे तो चारों तरफ आग ही आग है!!
कितनी अकुलाहट भरी है जिन्दगी
हर तरफ चीख-पुकार भागमभाग है!!
अब तो मैं अपने ही लहू को पीऊंगा
इक दरिंदगी भरी अब मेरी प्यास है!!
मेरे भीतर तो तुम्हे कुछ नहीं मिलेगा
मुझपर ऐ दोस्त अंधेरों का लिबास है!!
हर तरफ पानियों के मेले दिखलाती है
उफ़ ये जिंदगी है या कि इक अजाब है!!
हर लम्हा ऐसा गर्मियत से भरा हुआ है
ऐसा लगता है कि हयात इक आग है !!
हम मर न जाएँ तो फिर करें भी क्या
कातिल को हमारी ही गर्दन की आस है!!
रवायतों को तोड़ना गलत है "गाफिल"
यही रवायतें तो शाखे-दरख्ते-हयात हैं!!
कवि : राजीव जी की रचना
8 टिप्पणियाँ:
जिंदगी का भयावह चित्रण है इस रचना में
एक बेहतरीन रचना है ये
पढ़कर बहुत अच्छा लगा
आप बहुत दिनों से गायब हैं मोहतरमा
कातिल को हमारी ही गर्दन की आस है!!
बेहतरीन रचना. हर शेर लाजवाब
बहुत बेहतरीन रचना.......
बधाई....
बहुत बढ़िया रचना ......
सच का एक अनोखा पेह्लो दर्शाती हा ये रचना। बहुत खूब ।
इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
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