संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

सोमवार, 6 अप्रैल 2009

दर्द से हाथ न मिलाते तो क्या करते

दर्द से हाथ न मिलाते तो क्या करते,
 
गम के आंसू न बहते तो क्या करते,
 
किसी ने मांगी थी हमसे रोशनी,
 
हम खुद को न जलते तो क्या करते ? ?  

 
मेरे दिल के ज़ख्म अब आह नही भरते,
 
क्योकि वो अब इस दिल में रहा नही करते,
 
हमने आँसू से उनको विदाई दी है
 
इन आँखों में अब अश्क रहा नही करते।! ! ! 

 
तुझे आँसू भारी वो दुआ मिल
 
जिसे कभी न इन्कार ख़ुदा करे,
 
तुझे हसरत न रहे कभी जन्नत की
 
तेरे आंगन में मोहब्बतो की ऐसी हवा चले… 

 
चले गये हो दूर कुछ पल के लिये,
 
दूर रहकर भी करीब हो हर पल के लिये,
 
कैसे याद न आय आपकी एक पल के लिये,
 
जब दिल में हो आप हर पल के लिये…

9 टिप्पणियाँ:

परमजीत सिहँ बाली 6 अप्रैल 2009 को 12:58 pm बजे  

बहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।

Unknown 6 अप्रैल 2009 को 1:16 pm बजे  

गार्गी आप अच्छा लिखती हैं । मैंने आपकी कई रचनाएं पढी है । उन सब ये यह मुझे थोड़ा कम अच्छी लगी । शुभकामनाएं

संगीता पुरी 7 अप्रैल 2009 को 5:19 am बजे  

बहुत सुंदर रचना है ... बधाई।

श्यामल सुमन 7 अप्रैल 2009 को 7:24 am बजे  

बहुत खूब। कहते हैं कि-

अंधेरा माँगने आया था रौशनी की भीख।
हम अपना घर न जलाते तो क्या करते?

एक मुक्तक मेरी तरफ से भी-

कई लोगों को देखा है, जो छुपकर के गजल गाते।
बहुत हैं लोग दुनियाँ में, जो गिरकर के संभल जाते।
इसी सावन में अपना घर जला है क्या कहूँ यारो,
नहीं रोता हूँ फिर भी आँख से, आँसू निकल आते।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Dr.Bhawna Kunwar 7 अप्रैल 2009 को 1:49 pm बजे  

बहुत सुंदर भाव बहुत-बहुत बधाई...

चिराग जैन CHIRAG JAIN 10 अप्रैल 2009 को 12:46 am बजे  

तेरी बख़्शी हुई इस ज़िंदगी को
कहाँ ले जाऊँ आसिफ़ ये बतादे
तबीयत कुछ बनाना चाहती है
मुक़द्दर कुछ बनाना चाहता है

GIRISH CHANDRA SHUKLA 18 अप्रैल 2009 को 10:56 pm बजे  

bahut aacha likha hai….. i always appreciate to people who thought and Wright like this.....
aap ka mere blog me swaght hai.....
शाहिल को सरगम, खेतो में पानी, सावन सुहानी, पतझड़ को बहार, धरती को प्यार, राही को रास्ता, मुशाफिर को मंजिल, मृत्यु को जीवन, जीवित को भोजन,

GIRISH CHANDRA SHUKLA 18 अप्रैल 2009 को 10:59 pm बजे  
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