दर्द से हाथ न मिलाते तो क्या करते
दर्द से हाथ न मिलाते तो क्या करते,
गम के आंसू न बहते तो क्या करते,
किसी ने मांगी थी हमसे रोशनी,
हम खुद को न जलते तो क्या करते ? ?
गम के आंसू न बहते तो क्या करते,
किसी ने मांगी थी हमसे रोशनी,
हम खुद को न जलते तो क्या करते ? ?
मेरे दिल के ज़ख्म अब आह नही भरते,
क्योकि वो अब इस दिल में रहा नही करते,
हमने आँसू से उनको विदाई दी है
इन आँखों में अब अश्क रहा नही करते।! ! !
तुझे आँसू भारी वो दुआ मिल
जिसे कभी न इन्कार ख़ुदा करे,
तुझे हसरत न रहे कभी जन्नत की
तेरे आंगन में मोहब्बतो की ऐसी हवा चले…
चले गये हो दूर कुछ पल के लिये,
दूर रहकर भी करीब हो हर पल के लिये,
कैसे याद न आय आपकी एक पल के लिये,
जब दिल में हो आप हर पल के लिये…
9 टिप्पणियाँ:
बहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
बहुत बढ़िया!!
गार्गी आप अच्छा लिखती हैं । मैंने आपकी कई रचनाएं पढी है । उन सब ये यह मुझे थोड़ा कम अच्छी लगी । शुभकामनाएं
बहुत सुंदर रचना है ... बधाई।
बहुत खूब। कहते हैं कि-
अंधेरा माँगने आया था रौशनी की भीख।
हम अपना घर न जलाते तो क्या करते?
एक मुक्तक मेरी तरफ से भी-
कई लोगों को देखा है, जो छुपकर के गजल गाते।
बहुत हैं लोग दुनियाँ में, जो गिरकर के संभल जाते।
इसी सावन में अपना घर जला है क्या कहूँ यारो,
नहीं रोता हूँ फिर भी आँख से, आँसू निकल आते।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत सुंदर भाव बहुत-बहुत बधाई...
तेरी बख़्शी हुई इस ज़िंदगी को
कहाँ ले जाऊँ आसिफ़ ये बतादे
तबीयत कुछ बनाना चाहती है
मुक़द्दर कुछ बनाना चाहता है
bahut aacha likha hai….. i always appreciate to people who thought and Wright like this.....
aap ka mere blog me swaght hai.....
शाहिल को सरगम, खेतो में पानी, सावन सुहानी, पतझड़ को बहार, धरती को प्यार, राही को रास्ता, मुशाफिर को मंजिल, मृत्यु को जीवन, जीवित को भोजन,
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