इसे क्या कहते है
तेरे जाने पर जान पाये ,
कि विश्वासघात किस कहते है ।
बस ता- उम्र यही सोचैगे,
कि प्यार किस कहते है । ।
तुम से मिल कर ही समझ पाये,
कि धोखा किस कहते है।
हर घड़ी हर पल दिल में होती है मशक़्क़त,
कि जो तुमने किया उसे क्या कहते है । ।
रोते हस्ते कट जायेगी ये ज़िन्दगी भी ,
पर हर साँस के साथ हम वेबफा तुम्ह कहते है।
एक बार तो आनी है उम्र भर कि नीद,
पर हर रात को जग कर पल पल मरना मुझे कहते है। ।
हर दम दे जाता है नया गम,
क्या सच में प्यार इसी को कहते है ।
जब भी चाही खुशी रुस्बैया मिली ,
क्या किस्मत इसी को कहते है । ।
8 टिप्पणियाँ:
jo raaze wafa humse unhone poonchha
ki mohabbat kya hai ...
bas ek aah nikli is toote dil se
kisi ke jane ka dukh hum khud hi samajh sakte.
priya
नमस्कार,
इसे आप हमारी टिप्पणी समझें या फिर स्वार्थ। यह एक रचनात्मक ब्लाग शब्दकार के लिए किया जा रहा प्रचार है। इस बहाने आपकी लेखन क्षमता से भी परिचित हो सके। हम आपसे आशा करते हैं कि आप इस बात को अन्यथा नहीं लेंगे कि हमने आपकी पोस्ट पर किसी तरह की टिप्पणी नहीं की।
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सहयोग करने के लिए अग्रिम आभार।
कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
शब्दकार
रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
गार्गी गुप्ता!
आपने अपनी कविता में शब्दों को सुन्दर ढंग से पिरोया है।
इससे भावों में जीवन्तता आ गयी है।
अभिव्यक्ति सुन्दर और ग्राह्य है।
आपके ब्लाग पर देर से आया हूँ।
अन्तर्-जाल पर ब्लागिंग की दुनियाँ में आपका स्वागत है।
क्या बात है ! खूब लिखा है ...
सुन्दर प्रसतुति। कहते हैं कि-
निकाला काँटे काँटा कभी कभी हमने।
चुभते तो दोनो मगर एक मेहरबान ठहरा।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत खूब.......अच्छी रचना.....
प्यार तो हमने भी निभाया है
न कह हम को धोखेबाज़
न हमने किया है विश्वासघात
प्यार को हमने आत्माओं का
तराना माना है ,ना के जिस्मो का मिलन
मर के भी भी रहेगी तेरे आगोश की खुशबू
तेरी हर आह से टपकेंगे
मेरे दिल से खून के आंसू
क्या कीजिये जो हमने किया
उसे हम लड़की की समाजिक मजबूरी कहते हैं
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