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चिट्ठाजगत

शनिवार, 16 मई 2009

खुशी बूंद होती है नूर की



क्या कहे तेरी मनमोहक खूबसूरती।
तू इस रूप में लग रहा है खुशी का मूर्ति।।

उन्मद नाच रहा है खुशी में ।
क्या हो गई है तेरे भी किसी अभिलाषा की पूर्ति।।

चंचल सा मन है सुनता कहा है ।
बस हर तरफ है तेरी ही अनुभति।।

खोले है बाहे जाने किस को पुकार ।
मंज़िल करीब है जो बहुत दूर थी।।

चंचल है चितबन चाँदनी सा वदन ।
नचे है छम छम देखो खुशी इस मयूर की ।।

आज खुश हो ले काल के भरोसा नही है।
खुशी बूंद होती है नूर सी ।।

8 टिप्पणियाँ:

मीत 16 मई 2009 को 12:38 pm बजे  

निश्चित ही आपका मन बहुत सुंदर है जो इतनी सुंदर अभिव्यक्ति निकली है इस मन से... बहुत सुंदर शब्दों के साथ...
आभार
मीत

अनिल कान्त 16 मई 2009 को 12:46 pm बजे  

humara man bhi isi mayoor ki tarah hota hai ...jo bekhauf hokar kabhi kabhi nachne lagta hai

दिगम्बर नासवा 16 मई 2009 को 4:31 pm बजे  

चंचल है चितबन चाँदनी सा वदन ।
नचे है छम छम देखो खुशी इस मयूर की ।।

मन के komal bhaavon से likhi sundar rachnaa है..............
nam vakai mayour सा naach uthaa...............

समयचक्र 16 मई 2009 को 9:24 pm बजे  

सुंदर अभिव्यक्ति..

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