तुम्हारी आंखें!
तुम्हारी आंखें!
कभी मेरे चेहरे के आस-पास
सरगोशियाँ करती हैं...
कभी आधी रात को ख्वाबों में
मेरी अंखियों से अठखेलियाँ करती हैं...
तुम्हारी आंखें!
गिरती है जब बारिश कभी मेरे तन पर
इन्हीं से निकली आंसुओं की बूंद सी लगती है...
सूख जाती है बारिश तो बरसने के बाद,
पर तुम्हारी आँखों में क्यों मुझे नमी सी लगती है...
तुम्हारी आंखें!
कुछ तो कहानी है इनमें,
जो मेरे कानो पे ये सुबकती हैं...
बोलती तो कुछ नहीं हैं पर,
एकटक मुझी को तकती हैं...
क्या करूँ में इनका, मेरी ज़िंदगी सालों से सोयी नहीं है?
तुम्हारी पथराई आँखों को देख मेरी आंख भी कब से रोई नहीं है...
वापस आ जाओ तुम कहाँ चली गई हो?
साथ अपने मेरी हँसी ले गई हो...
अपने होंठों के तले तुम्हारी आँखों को,
ढेर सा आराम दूंगा...
तुम्हारी आँखों में देखकर,
बाकि ज़िंदगी भी गुजार दूंगा...
तडपता है दिल जब ये,
मेरा पीछा करती हैं...
मुड़कर देखता हूँ तो,
छलका करती हैं...
अब सहन नहीं होता,
मुझे अपनी आँखों से मिला दो...
जहाँ तुम छुप गई हो...
मुझे भी छुपा दो....
कवि : मीत जी की रचना
10 टिप्पणियाँ:
मीत जी आप के इस सहयोग के लिए बहुत बहुत आभार
lots of thnx...
meet
bahut achchhi lagi mujhe !!
भावपूर्ण रचना के लिए, बधाई ।
आँखों ही आँखों में कही...........आँखों की लाजवाब कविता मीत जी को धन्यवाद
आँखों को केन्द्र में रखकर अच्छी प्रस्तुति। वाह। जब आँखों की बात चली तो पेश है कुछ पंक्तियाँ-
जब होती चार आँखें, आँखों से होती बातें।
आँखों से प्यार होता, आखों में कटती रातें।
आखों को चुभती आँखें, जो आँखें होती सूनी।
ममता से पूर्ण आँखें, आँखें भी होती खूनी।
एक आँख बिछाते हैं, एक आँख से छलते हैं।
एक दीप सा जलते हैं, एक द्वेष में जलते हैं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
ऐसा लगा कि अपने ही दिल का हाल पढ़ रहा हूँ
खूब बहुत खूब......... दिल की आवाज शब्दों के माध्यम से.........
meet jee kee adbhut rachnaa se rubaroo karwane ke liye shukriyaa...
क्या करूँ में इनका, मेरी ज़िंदगी सालों से सोयी नहीं है?
तुम्हारी पथराई आँखों को देख मेरी आंख भी कब से रोई नहीं है...
मीत जी बहुत ही सुन्दर रचना बधाई
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
एक टिप्पणी भेजें