आदमी बोलता बहुत है
आदमी बोलता बहुत है
सच बताऊँ !!
आदमी अपनी बोली में
झगड़ता बहुत है !!
आदमी !!
एक बहुत बड़ा चूहा है
जो खाता रहता है
दिन और रात
धरती को कुतर-कुतर
आदमी !!
एक बहुत बड़ा रेपिस्ट है
जो करता है
हर इक पल
धरती का स्वत्व-हरण
और देता है उसे
अपना गन्दा और
दुर्गंधमय अवशिष्ट-अपशिष्ट !!
.............!!
आदमी के अवशिष्ट से
कुम्भला और पथरा गई है धरती
और आदमी सोचता है
कि वही महान है !!
................!!
आदमी !!....सचमुच......
है तो बड़ा ही महान
और उसकी महानता
बिखरी पड़ी है
धरती के चप्पे-चप्पे पर.....!!
और बढती ही चली जा रही है
ये महानता...पल-दर-पल....
और बिचारी धरती....
सिकुड़ती ही चली जा रही है
इस महानता के बर-अक्श ....!!
और मजा यह कि
आदमी कभी अपने-आपको
रेपिस्ट समझता ही नहीं.....!!
कवि : राजीव जी की रचना
9 टिप्पणियाँ:
गार्गी जी,
बहुत खूब। राजीव जी की कविता बेहद प्रशंसनीय है। मैं कुछ पंक्तियां कहना चाहूंगा-
बांध तो तुने मोहब्ब्त के सभी तोड दिए,
अबकी सैलाब जो आया तो किधर जाओगे।
मैं समझता हूँ यह आदमी के नहीं किसी हैवान के लक्षण हैं
---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
नमस्ते!
इस पोस्ट के लिये बहुत आभार....
एक श्वेत श्याम सपना । जिंदगी के भाग दौड़ से बहुत दूर । जीवन के अन्तिम छोर पर । रंगीन का निशान तक नही । उस श्वेत श्याम ने मेरी जिंदगी बदल दी । रंगीन सपने ....अब अच्छे नही लगते । सादगी ही ठीक है ।
गर आदमी न हो तो, अधूरा है आदमी।
और आदमी से आदमी, बनता है आदमी।
फिर कत्ल क्यों करता है, आदमी का आदमी।
जब आदमी के प्यार में, रोता है आदमी।
एक हाथ बढाते हैं, एक हाथ क्यों मलते हैं।
एक दीप सा जलते हैं, एक द्वेष में जलते हैं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
यह रचना पहले पढ़ चुका हूँ दुबारा पढ़वाने के लिए धन्यवाद |
sunder vyangya rachna.
Achchhe vichar hai....
Esse puri manav jati ko sikh leni chahiye..
ek bar mai chala sair krne,
Dil me bada arman tha,
ek taraf gulsan khili thi,
to ek taraf samsan tha
chalte chalte pawn jb haddiyo pr pde,
tb unka yahi byan tha....
vo chalne wale jara sambhal ke chal
kyounki mai bhi ek roj ensan tha.....
shashi kant singh
shashibindas@gmail.com
shashiksrm.blogspot.com
बहुत ही उन्दा लिखा है आपने!
ye bahut achchhi lagi mujhe ...very nice
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