हम तो बस करतब दिखा रहे हैं......!!
चार बांसों के ऊपर झूलती रस्सी.....
रस्सी पर चलता नट....
अभी गिरा,अभी गिरा,अभी गिरा
मगर नट तो नट है ना
चलता जाता है....
बिना गिरे ही
इस छोर से उस छोर
पहुँच ही जाता है.....!!
इस क्षण आशा और
अगले ही पल इक सपना ध्वस्त....!!
अभी-अभी.....
इक क्षण भर की कोई उमंग
और अगले ही पल से
कोई अपार दुःख
अनन्त काल तक
अभी-अभी हम अच्छा-खासा
बोल बतिया रहे थे और
अभी अभी टांग ही टूट गई....!!
कभी बाल-बच्चों के बीच....
कभी सास बहु के बीच.....
कभी आदमी औरत के के बीच
कभी मान-मनुहार के बीच
कभी रार-तकरार के बीच....
कभी अच्छाई-बुराई के बीच
कभी प्रशंसा-निंदा के बीच
कभी बाप-बेटे के बीच
कभी भाई-भाई के बीच
कभी बॉस और कामगार के बीच
कभी कलह और खुशियों के बीच
कभी सुख और के बीच....
जैसे एक अंतहीन रस्सी
इस छोर से उस छोर तक
बिना किसी डंडे के ही
टंगी हुई है ,और हम
एक नट की भांति
करतब दिखाते हुए
बल खाते हुए
गिरने-संभलने के बीच
चले जा रहे हैं.....
बिना यह जाने हुए कि....
दूसरा जो छोर है....
उस पर तो मौत खड़ी हुई है....
हम संभल भी गए तो
कोई अवसर नहीं है....
कुछ भी पा लेने का.....!!!!
कवि : राजीव जी की रचना
4 टिप्पणियाँ:
very enjoying and childish recitation, remembering of childhood days.
woh kagaz ki kashti , wo barish ka pani, wo mohalle ki sabse nishani purani, woh budiya jise bache kehten thi nani. ,,,,
राजीव जी रचना पढ़वाने का शुक्रिया!
जैसे एक अंतहीन रस्सी
इस छोर से उस छोर तक
बिना किसी डंडे के ही
टंगी हुई है ,और हम
एक नट की भांति
करतब दिखाते हुए
बल खाते हुए
गिरने-संभलने के बीच
चले जा रहे हैं.....
बिना यह जाने हुए कि....
दूसरा जो छोर है....
उस पर तो मौत खड़ी हुई है....
gargi i have no word for this....
its orsam
meet
एक नट की भांति
करतब दिखाते हुए
बल खाते हुए
गिरने-संभलने के बीच
चले जा रहे हैं.....
बिना यह जाने हुए कि....
दूसरा जो छोर है....
उस पर तो मौत खड़ी हुई
गार्गी जी बहुत ही सुन्दर रचना
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
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