हम तन्हा न मरे
ऐसे थमी है, ज़िन्दगी मेरी ।
जैसे पत्थर पर खिचीं हो, लकीरें गहरी।।
जाने किस उम्मीद पर ,सांस आ कर लौट जाती है।
जैसे सांसो से जुड़ी है, ज़िन्दगी तेरी।।
जाने किस जुर्म की, सज़ा पाते है ।
अब तो संसार बन गया ,है मेरी कचहरी।।
थमी थमी सी नज़र है , थमी सी है धड़कन।
कितनी थमी है ये, गम की दुपहरी।।
सब कुछ चला गया , अब कुछ बाँकी न रहा।
मैं खुद ही बनी हर पल, खुद की सहेली।।
मौला रहम ! ऐसा न हो कि तुझे ,कोई ख़ुदा न कहे।
तन्हा तो जी लिये है , पर हम तन्हा न मरे ।।
10 टिप्पणियाँ:
अंतिम पंक्ति बड़ी जानदार है
मज़ा आ गया
आपमें बहुत अच्छा लिखने की संभावनाएं हैं...लिखती रहिये...
नीरज
घडियां बीत जाती हैं जो हो दुखभरी ,
बादल के पीछे है किरण सुनहरी ...
सुन्दर रचना लगी .....
लिखने की कोशिश भली अच्छा लगा प्रयास।
तन्हा कोई न मरे सुन्दर यह एहसास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
अनुभवों की छाप गहरी है
जीवित के सब साथ हैं, मर कर बने अनाथ।
परमधाम में में मोक्ष का, मिल जायेगा साथ।।
मौला रहम ! ऐसा न हो कि तुझे ,कोई ख़ुदा न कहे।
तन्हा तो जी लिये है , पर हम तन्हा न मरे ।।
its so nice...
meet
आपके दिल से निकले जज्बात सीधे हमारे दिल में उतर गये।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
yadi aap kavita karm ko gambhirata se leti h to...
aap me kavitva ki kafi sambhavanaye hai lekin mere simit samajh ke anusar aap ko kavita ke craft par bahut parisram ki jarurat h.
इंसान धीरे- धीरे ही सफलता की सीडिया चदता हैं.
मेरे ख्याल में अपने पहले सीडी चढ़ ली है. आखरी लाइन बहुत ही उम्दा और कविता को ग़ज़ल बनाती है.
लिखते रहिये !
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