आज फिर अन्तर्मन हुआ उद्धेलित
आज फिर मन हुआ उद्धेलित
मन सशंकित, क्या पाउँगा
निरा लड़कपन, दौड़ जवानी,
सुस्ताया बुढापा, ख़तम कहानी
ये कौन है
जो दॉव नित नई चल रहा है
परदे के पीछे से
नित नई तानाँ- बानाँ बुन रहा है
कह गए वो सारथि बन कर बहुत कुछ,
बो बहुत कुछ क्यों फिसलता जा रहा है
क्यों सशंकित मन हुआ है,
क्या कोई फिर से दावँ नई चल रहा है
धार में - मजधार में हूँ ,
हूँ किनारे से अपरिचित
है भरोशा बो बहुत कुछ,
सारथी बन देगा किनारा
फिर भी न जाने,
क्यों सशंकित मन हुआ है,
बावला बन, क्यों भटकता फिर रहा है
भर्मित क्यों हो रहा उससे,
जिसका होना ही भ्रम है
कह गए शंकर की, अद्वेत है सब,
रूप - रेखा सब यहाँ बस एक भ्रम है
पेट भी और भूख भी क्या एक भ्रम है ?
शाश्वत तो यहाँ केवल एक ब्रहम है ....
सुन कर ही इसे मै पान कर लूं ,
या फिर चिंतन - मनन और ध्यान कर लूं
है अबूझ ये बुझ न पाऊँ,
इसलिए ये मन सशंकित हुआ है
फिर कभी उलझुंगा इससे,
फिर कभी निपटूंगा इससे
कवि: कुंवरजी की रचना
18 टिप्पणियाँ:
कुंवरजी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुघंद बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
waah behtreen rachna
Gahan sundar chintan...Sundar rachna....
सुन्दर रचना प्रेषित की हैं बधाई।
उद्धेलित मन की भाषा,
विचारों की गहन परिभाषा,
बहुत ही सशक्त है,
आपकी रचना पर मेरा मन आशक्त है.
बहुत ही सुन्दर रचना ............बहुत खुब
बेहतरीन प्रस्तुति ।
पेट भी और भूख भी क्या एक भ्रम है ?
शाश्वत तो यहाँ केवल एक ब्रहम है ....
bahut hi umda line likhe hai apne,
sara jeevan ek brahm sa hi lagta hai,maut ke waqt yeh brahm toot jata hai....bahut khub.
कुंवर जी की इस उम्दा रचना को प्रस्तुत करने का आभार.
मै तो बस मन में चल रही रस्सा -कशी को लिख डालता हूँ |
यदि ये उम्दा, बेहतरीन और सुन्दर बन पड़ी है तो गुनाहगार मेरा मन ही है, उम्मीद है ये फिर गुनाह करेगा |
इसमें कोई भर्म न हो, कुंवर मै ही हूँ|
अपनी गुनाह कबुल करता हूँ|
आपका बहुत सुन्दर रचना अत्यंत भावः पूर्ण
प्रदीप मनोरिया
09425132060
फिर कभी उलझुंगा इससे,
फिर कभी निपटूंगा इससे
sunder...
badhai sweekar karen..
आपका उद्वेवल मन को झकझोर गया भीतर तक।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Is arthpurn rachna ko prastut karne ke liye dhanywaad.
man ka gahan chintan ,,
sundar rachana par badhaai kuvar ji
Shabdon ke pare jaake ye ehsaas thame hain...yaa beh rahe hain!!Aur kya kahun?
http://shamasansmaran.blogspot.com
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very nice one....
बहुत खूब! शानदार!
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