पर गम बता ये तमाम क्या है
वादों का जो हंसी सफ़र है बता ये कैसे मकाम का है
महकती सांसों में गम है मेरे बता ये कैसे इनाम का है
तुम्हे मुकम्मल जहाँ मिलेगा दुआ जो मेरी कुबूल होगी
हिज्र की रातों में सिकना मुझे है ये सितम कैसे मकाम का है
हुश्न की चादर तले तू कत्ल है और कातिल मेरी भी तू है
मै हश्र का दिन हूँ तेरे लिए तू बता की तेरा पैगाम क्या है
मैंने लिख दिए हैं हजार ख़त ये नज्म तुझ पे निसार हो
मुझे मौत होगी नसीब जो कह की तेरा पयाम क्या है
तुझे शुबह की हो रंगीनिया तुझे शब् में कोई नसीब हो
मुझे बता की मेरा नसीब क्या है मेरी बिलखती शाम क्या है
तुम्हे सारी खुशियाँ मिले यहाँ तुम्हें गम का साया न मिले
मुझे तेरी यादें कबूल हैं पर गम बता ये तमाम क्या है ........
कवि : ''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना
8 टिप्पणियाँ:
मैंने लिख दिए हैं हजार ख़त ये नज्म तुझ पे निसार हो
मुझे मौत होगी नसीब जो कह की तेरा पयाम क्या है
बहुत अच्छी रचना है...बधाई...
नीरज
वादों का जो हंसी सफ़र है बता ये कैसे मकाम का है
महकती सांसों में गम है मेरे बता ये कैसे इनाम का है
.........अतिसुन्दर भाई
अत्यन्त सुन्दर रचना है
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गुलाबी कोंपलें
आभार इस सुन्दर रचना को पढ़वाने का.
bahut shukriya....is tarah ki rachnayein dil ko sukun deti hain.
bahut achha !
waah waah
badhaai !
मैंने लिख दिए हैं हजार ख़त ये नज्म तुझ पे निसार हो
मुझे मौत होगी नसीब जो कह की तेरा पयाम क्या है
बहुत सुन्दर रचना है , बधाई.
dhanyawaad,,,,,,,,, aap sabhi ko protsahan aur sneh ke liye
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