संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

मंगलवार, 28 जुलाई 2009

जो करनी हो मोहब्बत

जो करनी हो मोहब्बत
जो करनी हो मोहब्बत तो ,बेवजा करना
और जो हो जाये तो डूबकर ,रजा करना

मै करूँ गलतियाँ जो मचल जाओ तुम
लुत्फ़-ऐ-दीदार करना और ,मजा करना

तुम्हारी खैरियत मेरी जिम्मेदारी रहेगी
मेरे लिए अपनी ही नमाज़ ,अजां करना

रूठना तो रोना गले लगकर, मना लूँगा
दूर होकर दिल-ऐ-नादान को ना सजा करना

कभी हो मौका तो आ जाना और लिपट जाना
रश्म-ओ-रिवाज से एक बार दगा करना

सुनो गर ना रहूँ शरीक-ऐ-जन्नत हो जाऊँ
मुस्कुराना और मोहब्बत का फ़र्ज़ अदा करना

अगर ऐसे ही छोड़ जाऊँ दुनिया मै ''अजीत''
कफ़न में आँचल रख आगोश-ऐ-कज़ा करना
 
कवि : ''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना

16 टिप्पणियाँ:

सदा 28 जुलाई 2009 को 11:04 am बजे  

तुम्हारी खैरियत मेरी जिम्मेदारी रहेगी
मेरे लिए अपनी ही नमाज़ ,अजां करना


बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

निर्मला कपिला 28 जुलाई 2009 को 11:13 am बजे  

किसी एक दो लाईण खे लिये कहूँगी तो पूरी रचना से इन्सफ नहीं होगा बहुत ही लाजवाब लिखा है बधाई

आनन्द वर्धन ओझा 28 जुलाई 2009 को 1:22 pm बजे  

'रस्मों-रिवाज़ से एक बार दगा करना...' बहुत सुन्दर ! लाजवाब !! निर्मला कपिला जी ने बिलकुल ठीक कहा है, हर शेर माशाल्लाह ! क्या बात है ! दाद देता हूँ त्रिपाठीजी !! और, गार्गीजी को बेहतरीन रचना परोसने का शुक्रिया !

अनिल कान्त 28 जुलाई 2009 को 2:40 pm बजे  

अच्छी रचना पढ़वाने के लिए आभार

उम्मीद 28 जुलाई 2009 को 2:40 pm बजे  

अजीत जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन

आप की ये रचना मान को छू कर सीधे आत्मा तक पुच गई .......भुत ही सुन्दर भाव

सुरेन्द्र "मुल्हिद" 28 जुलाई 2009 को 5:05 pm बजे  

very nicely composed and expressed....
keep rolling gargi ji...

thanks

http://shayarichawla.blogspot.com/

Nidhi 28 जुलाई 2009 को 5:15 pm बजे  

behad khubsurti se prem path racha gaya hai........ bhut hi sundar rachna hai

Udan Tashtari 28 जुलाई 2009 को 5:32 pm बजे  

तुम्हारी खैरियत मेरी जिम्मेदारी रहेगी
मेरे लिए अपनी ही नमाज़ ,अजां करना

क्या बात है !वाह!

ajitji 28 जुलाई 2009 को 7:45 pm बजे  

dhanyawaad aap sabhi ko
aapki sarahana aur prtsahan srijan ke marg par sada hi mera margdarshan karega,,,,,,,,,

gargi ji
is rachana ko yahan rakhne ke liye
mai hriday se aapka aabhari hun
aise hi sneh banaaye rakhen

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 28 जुलाई 2009 को 9:03 pm बजे  

''अजीत त्रिपाठी'' जी का सुझाव अच्छा है।
इसे पढ़वाने के लिए आपका आभार।

Vinay 29 जुलाई 2009 को 8:50 am बजे  

बहुत अच्छी रच्ना है!

alfaz 29 जुलाई 2009 को 6:55 pm बजे  

बेमिसाल, लाजवाब, जैसे शब्द भी कम आपकी इस रचना के लिए, अति सुन्दर ............

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