और कहीं अरमान धुल रहे थे
आदम कद दीवारों से घिरा आँगन
दो अल्हड जवानियों को
मिलाने लगा था,,
की साथ दिया तुने भी खुदा
हर बूँद के साथ
मिलन को सुहावना बना दिया
झमाझम करके बरसते बादलों से ,,
होंठ थरथरा उठे थे ,,
मिलन का नव विस्तार हो रहा था .
उन्ही दीवारों के बाहर
कोई और भी था
एक लड़का और हाथ में बच्ची
फटेहाल बेहाल , जाने किस हाल में
एक छत होती थी सर पे रोज
सूखे आसमान की ..
आज तुने वो भी छीन ले खुदा
बच्ची मरने की सी हालत में आ गई है
और लड़के के होंठ थरथरा उठे हैं
शायद पेट भूखा होने से ..
शायद ठण्ड ज्यादा है ,,
या शायद नवजात की बेबसी पर
..
बरसात तो की खुदा
मगर ये क्या हश्र हुआ
बरसात ने दो को मिलाया
दो को मिटाने जुट गई
बरसात में अरमान तो
दोनों तरफ थे
बस फर्क ये था मेरे खुदा
कहीं अरमान घुल रहे थे
और कहीं
अरमान धुल रहे थे
कवि : ''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना
9 टिप्पणियाँ:
अजीत जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
बरसात में अरमान तो
दोनों तरफ थे
बस फर्क ये था मेरे खुदा
कहीं अरमान घुल रहे थे
और कहीं
अरमान धुल रहे थे
अजीत जी को बधाई।
आपका धन्यवाद।
bahut he achhi rachna...
dil ko chhu leni wali baat kahi hai....
keep writing good...
surender
http://shayarichawla.blogspot.com/
विसंगतिया वाकई पीडा बन जाती है
सुन्दर रचना
aap sabhi ko bahut bahut dhanyawaad,,
aise hi sneh dete rahen
ati sundar . lagta hai
mausam ke hisab likhi gayi hai.
shukriya .
इतनी सुन्दर रचना के लिए आप को बधाई।
अत्यंत सुन्दर रचना
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bahut sunder rachna badhai svikaar kare
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