संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!

कब यहाँ से वहाँ.....कब कहाँ से कहाँ ,
कितनी आवारा है ये मेरी जिंदगी !!
कभी बनती सबा कभी बन जाती हवा ,
कितने रंगों भरी है मेरी ये जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी -जिंदगी-जिंदगी !!
नाचती कूदती-चिडियों सी फूदती ,
चहचहाती-खिलखिलाती मेरी जिंदगी !!
जिंदगी -जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
याद बनकर कभी,आह बनकर कभी ,
टिसटिसाती है अकसर मेरी जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
जन्म से मौत तक,खिलौनों से ख़ाक
तक
किस तरह बीत जाती है ये तन्हाँ जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!


कवि : राजीव जी की रचना

12 टिप्पणियाँ:

उम्मीद 15 जुलाई 2009 को 10:24 am बजे  

राजीव जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन

संगीता पुरी 15 जुलाई 2009 को 11:29 am बजे  

सुंदर रचना .. सचमुच यही तो है जिंदगी !!

MANVINDER BHIMBER 15 जुलाई 2009 को 11:31 am बजे  

जिंदगी-जिंदगी -जिंदगी-जिंदगी !!
नाचती कूदती-चिडियों सी फूदती ,
चहचहाती-खिलखिलाती मेरी जिंदगी !!
जिंदगी -जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
कितना प्यारा लिखती हैं आप , मैं तो कहूंगी कितना अद्भुत सोचती हैं आप |
बिना सोचे कोई लिख ही नहीं सकता |
वो रूहानी इश्क से सराबोर कर दिया

हें प्रभु यह तेरापंथ 15 जुलाई 2009 को 11:56 am बजे  

gargiJI gupta,
राजीव जी कृत रचना बहुत ही अच्छी लगी है।
सुन्दर।

आभार/शुभकामनाओ सहित
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर

श्यामल सुमन 15 जुलाई 2009 को 11:58 am बजे  

जिन्दगी की जीवंतता लिए यह रचना अच्छी लगी।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

नीरज गोस्वामी 15 जुलाई 2009 को 12:17 pm बजे  

याद बनकर कभी,आह बनकर कभी ,
टिसटिसाती है अकसर मेरी जिंदगी !!
टिसटिसाती शब्द का प्रयोग पहली बार पढ़ा...बहुत अच्छी रचना...
नीरज

Vinay 15 जुलाई 2009 को 2:01 pm बजे  

बहुत प्रभावशाली रचना है

ओम आर्य 15 जुलाई 2009 को 2:34 pm बजे  

जन्म से मौत तक,खिलौनों से ख़ाक तक
किस तरह बीत जाती है ये तन्हाँ जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!

bahut bahut bahut bahut bahut hi sundar

ओम आर्य 15 जुलाई 2009 को 2:34 pm बजे  
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
ओम आर्य 15 जुलाई 2009 को 2:34 pm बजे  
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Nidhi 16 जुलाई 2009 को 3:04 pm बजे  

bhut kam shabdo me kitni badi zindagi ki itni sundar paribhasha likh di aapne....... bhut sundar.....
vaise aapke or hmare blog ka naam same hai

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