अब हम यहाँ रहें कि वहाँ रहें........!!
अपने आप में सिमट कर रहें
कि आपे से बाहर हो कर रहें !!
बड़े दिनों से सोच रहे हैं कि
हम अब यहाँ रहें या वहाँ रहें !!
दुनिया कोई दुश्मन तो नहीं
दुनिया को आख़िर क्या कहें !!
कुछ चट्टान हैं कुछ खाईयां
जीवन दरिया है बहते ही रहे !!
कुछ कहने की हसरत तो है
अब उसके मुंह पर क्या कहें !!
जो दिखायी तक भी नहीं देता
अल्ला की बाबत चुप ही रहें !!
बस इक मेहमां हैं हम "गाफिल "
इस धरती पे तमीज से ही रहें !!
कवि : राजीव जी की रचना
7 टिप्पणियाँ:
राजीव जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
ज़िन्दगी को बख़ूबी बयाँ किया है
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गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम
कुछ चट्टान हैं कुछ खाईयां
जीवन दरिया है बहते ही रहे !!
कुछ कहने की हसरत तो है
अब उसके मुंह पर क्या कहें !!
waah bahut khub
Man ki uljhanon ko bakhoobi bayaan kiya hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
composed with a true heart again...
keep writing...excellent work done...
दुनिया कोई दुश्मन तो नहीं
दुनिया को आख़िर क्या कहें !!
बहुत सुन्दर पंक्तियां हैं
कुछ कहने की हसरत तो है
अब उसके मुंह पर क्या कहें !!
waah rajeev ji
bahut khoob ,,
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