संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

अब हम यहाँ रहें कि वहाँ रहें........!!

अपने आप में सिमट कर रहें
कि आपे से बाहर हो कर रहें !!
 
बड़े दिनों से सोच रहे हैं कि
हम अब यहाँ रहें या वहाँ रहें !!
 
दुनिया कोई दुश्मन तो नहीं
दुनिया को आख़िर क्या कहें !!
 
कुछ चट्टान हैं कुछ खाईयां
जीवन दरिया है बहते ही रहे !!
 
कुछ कहने की हसरत तो है
अब उसके मुंह पर क्या कहें !!
 
जो दिखायी तक भी नहीं देता
अल्ला की बाबत चुप ही रहें !!
 
बस इक मेहमां हैं हम "गाफिल "
इस धरती पे तमीज से ही रहें !!
 
कवि : राजीव जी की रचना

7 टिप्पणियाँ:

उम्मीद 16 जुलाई 2009 को 11:37 am बजे  

राजीव जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन

mehek 16 जुलाई 2009 को 12:42 pm बजे  

कुछ चट्टान हैं कुछ खाईयां
जीवन दरिया है बहते ही रहे !!

कुछ कहने की हसरत तो है
अब उसके मुंह पर क्या कहें !!
waah bahut khub

सुरेन्द्र "मुल्हिद" 17 जुलाई 2009 को 12:19 pm बजे  

composed with a true heart again...
keep writing...excellent work done...

संजीव गौतम 20 जुलाई 2009 को 9:02 am बजे  

दुनिया कोई दुश्मन तो नहीं
दुनिया को आख़िर क्या कहें !!
बहुत सुन्दर पंक्तियां हैं

ajitji 21 जुलाई 2009 को 5:55 pm बजे  

कुछ कहने की हसरत तो है
अब उसके मुंह पर क्या कहें !!

waah rajeev ji
bahut khoob ,,

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