आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है......!!
ये बात है खुद से ही ....जिस के पास खुद के लिये कुछ नही है...,
शायद! वो खुद भी नही...
आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है ,
कल मैं पूरी थी तुम्हारी आज मन भी नही है।
अब तो बस, खाली मकान-सा खण्ङर बचा है ,
इसके विराने भी, गूंजते शोर से काम नही है ।
आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है॥
कांच का सा मन, फूल का सा तन,
धीरे-धीरे देख पत्थर बन गया है।
पत्थरो में जान तो है , अरमान नही है,
आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है॥
आज में कहती हूँ, मुझ से दूर हो जा,
अब तो तुझ में रहने की हिम्मत नही है।
आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है॥
19 टिप्पणियाँ:
बहुत ही दिल के करीब लगी ये रचना ......बहुत हद तक सही है.....
दिल के जख्म बहुत गहरे होते हैं
amazing expression
no words to say anything for thsi wrirting
गार्गी
तुम्हारी सारी कविताये अमज़िंग है , मैं किसकी तारीफ़ करूँ और किसकी नहीं ....
मेरे पास शब्द नहीं है ...
लिखती रहो
विजय
gargi ji,,,,,,,,, shayad ye aapki pahli ya doosri rachana padh raha hu,,,,,, bahut hi sundar aur sarthak likha hai aapne .,,,
dard ki sahaj abhi vyakti ..
aur sach kahne ka adbhut sahas ki parichayak kavita,,
bahut khoob
अब तुम कविता से ग़ज़ल की तरफ बाद रहे हूँ, जो दर्द तुम्हारी कविता में उजागर है, उस्सी से ग़ज़ल जनम लेती है, ग़ज़ल और दर्द का बहुत पुराना रिश्ता हैं. दर्द इ दिल से जो कुछ भी लिखा जाता हैं वो बेमिसाल है. लिखे रहिये.और मुस्कराते रहिये.
बहुत बढ़िया।
काबिले तारीफ,
आपकी अपनी रचना देख कर खुद को टिप्पणी से रोक नहीं पाया. पहले भी आपका ब्लॉग विजिट किया है और आज आपकी रचना के साथ. अच्छी, तीव्र भाव प्रधान कविता के लिए बधाई.
बधाई हो गार्गी जी, बेहतरीन दिल को छूती हुई रचना.....
गहन भाव लिए एक रचना!! बधाई!
बहुत ख़ूब,
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स्वागतम्:
· ब्रह्माण्ड के प्रचीनतम् सुपरनोवा की खोज
· ॐ (ब्रह्मनाद) का महत्व
Apne aap ko poora nichhawar karnewala hee ye baat kah sakta hai...!
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गर्गीजी,
कविता में पीडा चरम पर है, जो हतबुद्ध करती है और मर्म तक पहुंचती है ! कहीं मैंने ही कहा है--
'पीडा के परिदृश्य बदलते जीवन के साथी हैं...'
विश्वास है , यह पीडा भी पिघलेगी और निर्मल जल बनकर नयी कविताओं में प्रवाहित होगी. बधाई !
कुछ बिशेष भाव को दर्शाती रचना ठीक लगी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
atyant uttam gargi ji....
likhti rahiye....
गार्गी जी मैंने लगभग आप की सभी रचनाये पढ़ी है हर रचना एक से ये सुंदर है हर्दय की पीडा को पद्रसित करती बहुत ही बेहतरीन कविता
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
कहें तो किससे कहें कि हमारे पास क्या नहीं है,
मुट्ठी यूँ तो बंद है,मगर उसमें कुछ भी नहीं है !!
गरज ये कि सारे जहां को खिलाने बैठ गए हैं,
और तुर्रा यह कि खिलाने को कुछ भी नहीं है !!
तू यह ना सोच कि मैं तेरे लिए कुछ भी न लाया
हकीकतन तो यार मेरे पास भी कुछ भी नहीं है !!
मैंने तेरा कुछ भी ना लिया है ए मेरे दोस्त,यार
तेरे दिल के सिवा मेरे पास और कुछ भी नहीं है !!
अपनी ही कब्र पर बैठा यह सोच रहा हूँ "गाफिल"
जमा तो बहुत कुछ किया था,पर कुछ भी नहीं है !!
कांच का सा मन, फूल का सा तन,
धीरे-धीरे देख पत्थर बन गया है।
पत्थरो में जान तो है , अरमान नही है,
आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है॥
आज में कहती हूँ, मुझ से दूर हो जा,
आपकी रचनाये टाप रही हैं धीरे...धीरे यानि की कुंदन बन रही हैं....
बेहद पसंद आयी...
जारी रहे...
मीत
कांच का सा मन, फूल का सा तन,
धीरे-धीरे देख पत्थर बन गया है।
पत्थरो में जान तो है , अरमान नही है,
आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है॥
आज में कहती हूँ, मुझ से दूर हो जा,
अब तो तुझ में रहने की हिम्मत नही है।
आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है॥
मै किस लाइन को कोट करू सभी लाइन बहुत बढ़िया है ..
waise aapka sahitya se etna lagaw dekhkar bahut badiya laga ............meri shubhkamnaye aapke sath hai ki aap hum sabhi ko you hi nayi nayi rachnaye hum sabhi ko padwati rahe. aapke har jayaz khwab pure ho yahi kamna hai ...
सुन्दर रचना....अभिव्यक्ति पर आपकी सुन्दर अभिव्यक्तियाँ !!
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