संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

इतना भी जुड़ ना जाए..

कभी धुप चिलचिलाये
कभी शाम गीत गाये....!!
जिसे अनसुना करूँ मैं
वही कान में समाये.....!!
उसमें है वो नजाकत
कितना वो खिलखिलाए !!
सरेआम ये कह रहा हूँ
मुझे कुछ नहीं है आए...!!
चाँद भी है अपनी जगह
तारे भी तो टिमटिमाये...!!
जिसे जाना मुझसे आगे
मुझपे वो चढ़ के जाए...!!
रहना नहीं है "गाफिल"
इतना भी जुड़ ना जाए...!!


कवि : राजीव जी की रचना

15 टिप्पणियाँ:

उम्मीद 9 जुलाई 2009 को 10:25 am बजे  

राजीव जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन

नीरज गोस्वामी 9 जुलाई 2009 को 11:56 am बजे  

जिसे अनसुना करूँ मैं
वही कान में समाये.....!
वाह क्या बात कही है आपने...अति सुन्दर...
नीरज

ajitji 9 जुलाई 2009 को 12:01 pm बजे  

waah janaab, bahut sundar rachana.......

Desk Of Kunwar Aayesnteen @ Spirtuality 9 जुलाई 2009 को 12:24 pm बजे  

जिसे जाना मुझसे आगे
मुझपे वो चढ़ के जाए...!!

kya bat hai...Bemishal...Aabhar....

M VERMA 9 जुलाई 2009 को 12:55 pm बजे  

जिसे अनसुना करूँ मैं
वही कान में समाये.....!!
बहुत अच्छा

alfaz 9 जुलाई 2009 को 3:33 pm बजे  

wah wah , akhri line mein bahut dam hain.

दिगम्बर नासवा 9 जुलाई 2009 को 4:12 pm बजे  

वाह लाजवाब rachna ................ sundar prastuti

Science Bloggers Association 9 जुलाई 2009 को 5:21 pm बजे  

ऐसा लगा, जैसे हमारे आस पास की रचना है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Udan Tashtari 9 जुलाई 2009 को 5:32 pm बजे  

राजीव जी की बेहतरीन रचना प्रस्तुत करने का आभार.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 9 जुलाई 2009 को 8:05 pm बजे  

राजीव जी की सुन्दर रचना है।
प्रकाशित करने के लिए बधाई।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) 10 जुलाई 2009 को 9:47 pm बजे  

प्यारे दोस्तों...आपके प्यार के लिए बेहद-बेहद-बेहद आभार....अब मैं नेट पर ज्यादा नहीं आ पा रहा...इसलिए अपनी पुरानी रचनाएं डाल कर "रचनाकर्म"के धर्म को पूरा कर रहा हूँ...!!

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