इतना भी जुड़ ना जाए..
कभी धुप चिलचिलाये
कभी शाम गीत गाये....!!
जिसे अनसुना करूँ मैं
वही कान में समाये.....!!
उसमें है वो नजाकत
कितना वो खिलखिलाए !!
सरेआम ये कह रहा हूँ
मुझे कुछ नहीं है आए...!!
चाँद भी है अपनी जगह
तारे भी तो टिमटिमाये...!!
जिसे जाना मुझसे आगे
मुझपे वो चढ़ के जाए...!!
रहना नहीं है "गाफिल"
इतना भी जुड़ ना जाए...!!
कवि : राजीव जी की रचना
15 टिप्पणियाँ:
राजीव जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
this is amazing...
kya baat hai..atynt sundar
rachana..
dhanywaad swikaar kare..
sundar abhivyakti
जिसे अनसुना करूँ मैं
वही कान में समाये.....!
वाह क्या बात कही है आपने...अति सुन्दर...
नीरज
waah janaab, bahut sundar rachana.......
जिसे जाना मुझसे आगे
मुझपे वो चढ़ के जाए...!!
kya bat hai...Bemishal...Aabhar....
जिसे अनसुना करूँ मैं
वही कान में समाये.....!!
बहुत अच्छा
wah wah , akhri line mein bahut dam hain.
वाह लाजवाब rachna ................ sundar prastuti
ऐसा लगा, जैसे हमारे आस पास की रचना है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
राजीव जी की बेहतरीन रचना प्रस्तुत करने का आभार.
राजीव जी की सुन्दर रचना है।
प्रकाशित करने के लिए बधाई।
beautiful poem
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चर्चा । Discuss INDIA
प्यारे दोस्तों...आपके प्यार के लिए बेहद-बेहद-बेहद आभार....अब मैं नेट पर ज्यादा नहीं आ पा रहा...इसलिए अपनी पुरानी रचनाएं डाल कर "रचनाकर्म"के धर्म को पूरा कर रहा हूँ...!!
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