कह दो उन से
कह दो उन से , उनका ख़याल आया था
क्यूँ नहीं है मेरी ये एक सवाल आया था
थमी हैं साँसें बेचैन है दिल , उनसे कहो
आँखों के सूखे समंदर में बवाल आया था ..
क्यूँ नहीं है मेरी ये एक सवाल आया था
थमी हैं साँसें बेचैन है दिल , उनसे कहो
आँखों के सूखे समंदर में बवाल आया था ..
कवि : ''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना
13 टिप्पणियाँ:
शायद जिन्दगी किसी नई परिभाषा से परिभाषित हैं। कविता हमारे रोज-मर्रा में होने वाले छोटे-छोटे हादसो की ओर इंगित कर रही है जो, कि जख्मों की गांठ खोल तो देते है फिर उन्हें भरने के लिये लंबा इंतजार करना पड़ता है।
ये एक अच्छी बात है की लोग कम से कम कविता से अपना दर्द बयाँ तो कर लेते हैं
हार्दिक शुभ कामनाएं !
अच्छा है अंदाज़े-बयाँ।
सुस्वागतम्।
waah waah !
aapki prem abhivyakti se paripurn layine bahut achchi lagi..
badhayi...
दिल को छू जाने वाली रचना।
बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सुन्दर अशआर हैं
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नये प्रकार के ब्लैक होल की खोज संभावित
भावानाओ का तुफान खडा कर दिये हो छोटी सी रचना मे ..........अतिसुन्दर ...........बधाई
very very nice....
एक छोटी सी रचना में सारा दर्द सिमट गया ,
काबिल इ तारीफ . बधाई.
Dard bhari rachnaa......... achhaa likha hai
भावपूर्ण.
aap sabhi ke sneh aur protsahan ke liye bahut bahut sukriya
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