संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

मुश्किलें......!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जिनके हाथ इतने मजबूत हैं कि

तोड़ सकते हैं जो किसी भी गर्दन....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जो कर रहे हैं हर वक्त-

किसी ना किसी का.....

या सबका ही जीना हराम....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जिनके लिए जीवन एक खेल है...

किसी को मार डालना ......

उनके खेल का इक अटूट हिस्सा !!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जो देश को कुछ भी नहीं समझते...

और देश का संविधान....

उनके पैरों की जूतियाँ....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जो सब कुछ इस तरह गड़प कर रहे हैं...

जैसे सब कुछ उनके बाप का हो.....

और भारतमाता !!........

जैसे उनकी इक रखैल.....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जिनको बना दिया गया है...

इतना ज्यादा ताकतवर.....

कि वो उड़ा रहे हैं हर वक्त.....

आम आदमी की धज्जियाँ.....

और क़ानून का सरेआम मखौल.....!!

...........दरअसल ये मुश्किलें......

हम सबके ही साथ हैं.....

मगर मुश्किल यह है....

कि..............

हमें जिनके साथ जीने में.....

अत्यन्त मुश्किलें हैं.....

उनको.........

कोई मुश्किल ही नहीं......!!??
 
कवि : राजीव जी की रचना

13 टिप्पणियाँ:

M VERMA 10 जुलाई 2009 को 4:33 pm बजे  

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति

ओम आर्य 10 जुलाई 2009 को 4:42 pm बजे  

उम्दा अभिव्यक्ति .........

निर्मला कपिला 10 जुलाई 2009 को 6:13 pm बजे  

क्या सही बात कही है राजीव जी ने बहुत सुन्दर आभार्

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 10 जुलाई 2009 को 9:56 pm बजे  

राजीव जी की सुन्दर रचना
प्रकाशित करने के लिए बधाई।

alfaz 11 जुलाई 2009 को 4:28 pm बजे  

प्रेरेना भरी रचना , अत्यंत सुन्दर.

ajitji 12 जुलाई 2009 को 1:10 pm बजे  

janaab
saty aur sarthak rachana par badhaai sweekaren

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) 12 जुलाई 2009 को 4:39 pm बजे  

bhut hi sunder kavita hai gar hum apni sahi muskilo par apna dhyan krndret kar le to muskile khatam hote der nahi lagegi

saadar
praveen pathik
9971969084

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) 12 जुलाई 2009 को 4:39 pm बजे  

bhut hi sunder kavita hai gar hum apni sahi muskilo par apna dhyan krndret kar le to muskile khatam hote der nahi lagegi

saadar
praveen pathik
9971969084

बेनामी,  13 जुलाई 2009 को 12:35 pm बजे  

हम्म...........बढ़िया है...

साभार
प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
हमसफ़र यादों का.......

hem pandey 14 जुलाई 2009 को 10:32 pm बजे  

मगर मुश्किल यह है....


कि..............


हमें जिनके साथ जीने में.....


अत्यन्त मुश्किलें हैं.....


उनको.........


कोई मुश्किल ही नहीं......!!??



-बहुत सुन्दर.

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