मै तुम्हारी परछाई तो हूँ ,,,
मेरे हाथ में तुम्हारा हाथ नहीं
पर धुप में तुम्हारी परछाई तो हूँ
मै कभी तुम्हारे साथ नहीं
पर अनदेखी तन्हाई तो हूँ
मै वफ़ा नहीं हूँ प्यार नहीं
कुछ ना सही हरजाई तो हूँ
मै आगाज़ नहीं अंजाम नहीं
रोती आँखों की रुसवाई तो हूँ
तुम हो निरा अकेली दुनिया में
पर मै तुम्हारी परछाई तो हूँ ,,,
कवि : ''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना
14 टिप्पणियाँ:
मै आगाज़ नहीं अंजाम नहीं
रोती आँखों की रुसवाई तो हूँ
काश यह मैंने लिखा होता!
mai to yah kahunga ki jisane bhi yah likha .......
usako mera salaam
जिंदगी की तस्वीर दिखाने वाली रचना।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत सुन्दर रचना है बधाई।
shukriya aap sabhi ko,
aise hi sneh dete rahen
कविता भावों की दृष्टि से बेहतरीन है. आप थोड़ा सा कविता के व्याकरण पर ध्यान दें. अच्छा तो यह होगा कि अपने मित्रों में से ही, जिसे इस विधा में निपुण मानते हों, परामर्श लें. सीखना अंतिम सांस तक जारी रहता है. हम सब मां के गर्भ से कविता सीख कर नहीं आये. मेरी बातें अगर बुरी लगें तो मुझे खरी खोटी जरूर सुना देना. और हाँ, इस टिप्पड़ी को डिलीट मत कर देना.
भावपूर्ण रचना.बधाई.
अच्छा लगा आपकी ये रचना पढ़कर। शायद टंकण में गलती से धुप लिखा रह गया है उसे धूप कर लें।
वाह ........... बहुत सुंदर रचना
अच्छी और भावपूर्ण कविता......पढ़कर अच्छा लगा.....अजीत जी को बधाई और आपको भी.....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
bahut hi manmohini rachna ,
man ko bahut acchi lagi.
alfaz.
aap sabhi ko bahut babhut dhanyawaad..
Sarwat ji ,, aapke sujhav ke liye tahe dil se dhanyawad,, mai koshish karunga,,
aise hi sujhav aur sneh dete rahen
parchaai,rusvaai aur HARJAAI aaj ke dour me majority me hai.isiliye prabhu lagtaa hai ki bahusankhyakon ki baraat me shaamil honaa chahte ho.
jhallevichar.blogspot.com
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