संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

गुरुवार, 25 जून 2009

जो छूट गई है दुनिया में



जो छूट गई है दुनिया में,, मेरी ही कुछ हस्ती थी
साहिल छोर के दरिया डूबी , मजबूत बड़ी वो कश्ती थी

उनका घर तो रौशन था पर डर था सबके चेहरे पर
एक उनके घर में रौनक थी और जलती सारी बस्ती थी

कुछ जिन्दा और मुर्दा लड़ते अल्लाह ईश के नाम पर
खामोशी मजबूरी थी कुछ जान यहाँ पर सस्ती थी

तूफानों को रंज बहुत था और चरागाँ जलते थे
कुछ अरमानो की दुनिया थी कुछ मौत यहाँ पर हस्ती थी

दिल लाख छुपाओ ताले में कोई चोर चुरा ले जायेगा
हैं लुटे घरौंदे रोज वहीँ पर जहाँ पुलिस की गस्ती थी,,,,,,
 
 
कवि : ''अजीत त्रिपाठी''  जी की रचना 

14 टिप्पणियाँ:

admin 25 जून 2009 को 6:17 pm बजे  

अजीत जी ने कुछ अच्‍छे शेर कहे हैं। बधाई।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

नीरज गोस्वामी 25 जून 2009 को 6:37 pm बजे  

उनका घर तो रौशन था पर डर था सबके चेहरे पर
एक उनके घर में रौनक थी और जलती सारी बस्ती थी

वाह...बेहतरीन रचना...
नीरज

निर्मला कपिला 25 जून 2009 को 6:43 pm बजे  

कुछ जिन्दा और मुर्दा लड़ते अल्लाह ईश के नाम पर
खामोशी मजबूरी थी कुछ जान यहाँ पर सस्ती थी
सुन्दर रचना बधाई

विनोद कुमार पांडेय 25 जून 2009 को 7:46 pm बजे  

भाव से परिपूर्ण रचना ,
अति सुंदर

ajitji 25 जून 2009 को 8:30 pm बजे  

aap sabhi ko bahut bahut dhanyawad

Vinay 25 जून 2009 को 8:41 pm बजे  

बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति!

alfaz 26 जून 2009 को 4:53 pm बजे  

Bahut khoob,,,, akhri line bahut hi umda likhi hain apne.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' 26 जून 2009 को 6:00 pm बजे  

"उनका घर तो रौशन था पर डर था सबके चेहरे पर,
एक उनके घर में रौनक थी और जलती सारी बस्ती थी"
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

satish kundan 27 जून 2009 को 12:43 pm बजे  

जो छूट गई है दुनिया में,, मेरी ही कुछ हस्ती थी
साहिल छोर के दरिया डूबी , मजबूत बड़ी वो कश्ती थी....बहुत खबसूरत रचना....

ajitji 28 जून 2009 को 12:42 am बजे  

aap sabhi ko bahut bahut dhanyawad,,,

Sajal Ehsaas 29 जून 2009 को 5:34 pm बजे  

bahut achha likha hai...khyaalat kamaal ke hai aur unko shabd bhi badi adaa se diye hai aapne...
कुछ अरमानो की दुनिया थी कुछ मौत यहाँ पर हस्ती थी
bs is pankti me kuch kamee lag rahee hai,ispe zara gaur kijiyegaa...


www.pyasasajal.blogspot.com

मीत 30 जून 2009 को 11:37 am बजे  

सुंदर रचना है अजित जी ...
मीत

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