तुम कहो तो
कुछ बंद ज़ुबां से
कुछ गुस्ताख निगा-ह से
कुछ मटकती आँखों से
कुछ भटकती साँसों से
कुछ चूडियों की खन खन से
कुछ पायलों की छम छम से
कुछ आँचल को लहराकर
कुछ जुल्फों को बिखराकर
कुछ आवेश में आकर भी
कुछ शरमाकर
कुछ मुझे बाँहों में लेकर
कुछ मेरी बाहों में आकर
कुछ प्यार भरा एक नगमा
तुम कहो तो
तुमसे अनुनय है ये
की तुम कुछ कहो तो
कुछ गुस्ताख निगा-ह से
कुछ मटकती आँखों से
कुछ भटकती साँसों से
कुछ चूडियों की खन खन से
कुछ पायलों की छम छम से
कुछ आँचल को लहराकर
कुछ जुल्फों को बिखराकर
कुछ आवेश में आकर भी
कुछ शरमाकर
कुछ मुझे बाँहों में लेकर
कुछ मेरी बाहों में आकर
कुछ प्यार भरा एक नगमा
तुम कहो तो
तुमसे अनुनय है ये
की तुम कुछ कहो तो
कवि : ''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना
4 टिप्पणियाँ:
umda kavita...............
badhaai !
shukriya janaab
एक ऐसी अभिव्यक्ति जिसे पढने के बाद आस पास एक खुश्बू फैल गई......मोहक एहसास से भरी कविता
om ji shukriya
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