एक विरह छंद था जीवन ये
एक विरह छंद था जीवन ये
एक शून्य मंद था जीवन ये
कुछ लपटें सी थी छुपी हुई
एक अजब द्वंद था जीवन ये
सौ रूप तुम्हारे देख लिए
सौ सृजन तुम्हारे देख लिए
जब तुम ना थी इन नजरों में
एक विकट अंध था जीवन ये
तुम बिन निरा अकेला था
मै खुद एक दुःख का मेला था
जीत ''अजीत'' को तुम हो मिली
एक परम-आ-नन्द है जीवन ये ,,,,,,,,,,
एक शून्य मंद था जीवन ये
कुछ लपटें सी थी छुपी हुई
एक अजब द्वंद था जीवन ये
सौ रूप तुम्हारे देख लिए
सौ सृजन तुम्हारे देख लिए
जब तुम ना थी इन नजरों में
एक विकट अंध था जीवन ये
तुम बिन निरा अकेला था
मै खुद एक दुःख का मेला था
जीत ''अजीत'' को तुम हो मिली
एक परम-आ-नन्द है जीवन ये ,,,,,,,,,,
कवि : ''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना
7 टिप्पणियाँ:
जीवन को रसमय करती है आपकी कविता।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत सुंदर कविता है।
मैंने न कलर्स देखा है ना यह धारावाहि्क।
घुघूती बासूती
एक विरह छंद था जीवन ये
एक शून्य मंद था जीवन ये
कुछ लपटें सी थी छुपी हुई
एक अजब द्वंद था जीवन ये
ye pankti ..bahot khas rahii
बहुत सुन्दर काव्य है
---
तकनीक दृष्टा
Badhai ho Ajit ji ko unke Jeet par...
Achhi ban pari hai ye apki kavita...
shukriya,, einstein ji khas aapko,,,,,,
aise hi sneh aur salaah dee rahen
bahut hi behtreen vaah
एक टिप्पणी भेजें