है अब लगाता उन्हें काफिओं की तरह.
क्या खूब पायी थी उसने अदा।
ख्वाब तोड़े कई आंधिओं की तरह॥
ख्वाब तोड़े कई आंधिओं की तरह॥
कतरे गए कई परिंदों के पर।
सबको खेला था वो बाजियों की तरह॥
हौसला नाम से रब के देता रहा।
औ फैसला कर गया काजिओं की तरह॥
ख़ास बनने के ख्वाब खूब बेंचे मगर।
करके छोडा हमें हाशिओं की तरह॥
साहिलों को मिलाने की जुंबिश तो थी।
खुद का साहिल न था माझिओं की तरह
जिनको दिल से लगा 'मशाल' शायर बना।
है अब लगाता उन्हें काफिओं की तरह॥
कवि: दीपक "मशाल" जी की रचना
6 टिप्पणियाँ:
दीपक 'मशाल' जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
लाजवाब रचना है दीपक जी को बहुत बहुत बधाई
जिनको दिल से लगा 'मशाल' शायर बना।
है अब लगाता उन्हें काफिओं की तरह॥
बहुत बढ़िया,
आपका आभार!
Bahut Sunder DEEPAK. Ab tum bahut jagah padhne ko mil rahe ho. BADHAAII.
Lage raho isii tarah.
बस आपका आशीर्वाद और स्नेह चाहिए. मैं तो सिर्फ इस दुनिया और आप लोगों से सीखे हुए को अपनी तरफ से अच्छे से अच्छे तरीके से पेश करने की एक कोशिश भर करता हूँ.
अभिवादन
बधाई, रचना सुन्दर बन पड़ी है
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