मन किया
आज न जाने क्यूँ रोने को मन किया।
माँ के आंचल में सर छुपा के सोने को मन किया।
दुनिया की इस भाग दौड़ में,खो चुका था रिश्तेय सब।
आज फिर उन रिश्तो को इक सिरे से संजोने का मन किया।
दिल तोद्ता हूँ सब का अपनी बातों से,
लड़ने का मन भी तो आपनो के मन से किया।
ता उमर जिसे भुला नही सकते ,
आज उणोह्ने हमें भुलाने का मन किया।
शिकवा भी तो आपनो से होती है,
क्या हुआ जो उन्हे ग़म देने का मन किया।
कवि : गुरशरण जी की रचना
7 टिप्पणियाँ:
गुरशरण जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
बहुत hसुन्दर लगी कविता हां कभी कभी मन होता है रोने का
शिकवा भी तो आपनो से होती है,
क्या हुआ जो उन्हे ग़म देने का मन किया।
बहुत खूब आभार्
बहुत सुन्दर रचना है
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BlueBird
aisa hota hai kabhi kabhi........bahut gahre bhavon se saji kavita.
सुन्दर रचना के लिए
बधाई
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gargi,
" achi abhivyakti hai...
sikawa bhi to apno se hoti hai
kya huva jo unhe gum de diya "
plz write apne not aapne
magar aapki feelings ko hamara salam "
----- eksacchi { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
http://hindimasti4u.blogspot.com
adbhut rachna once again...
thanks for sharing...
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