शामिल है.
लहू पहाड़ के दिल का, नदी में शामिल है,
तुम्हारा दर्द हमारी ख़ुशी में शामिल है.
तुम अपना दर्द अलग से दिखा न पाओगे,
तेरा जो दर्द है वो मुझी में शामिल है.
गुजरे लम्हों को मैं अक्सर ढूँढती मिल जाऊँगी,
जिस्म से भी मैं तुम्हे अक्सर जुदा मिल जाऊँगी.
दूर कितनी भी रहूँ, खोलोगे जब भी आँख तुम,
मैं सिरहाने पर तुम्हारे जागती मिल जाऊँगी.
घर के बाहर जब कदम रखोगे अपना एक भी,
बनके मैं तुमको तुम्हारा रास्ता मिल जाऊँगी.
मुझपे मौसम कोई भी गुज़रे ज़रा भी डर नहीं,
खुश्क टहनी पर भी तुमको मैं हरी मिल जाऊँगी.
तुम ख्यालों में सही आवाज़ देके देखना,
घर के बाहर मैं तुम्हें आती हुई मिल जाऊँगी.
गर तसब्बुर भी मेरे इक शेर का तुमने किया,
सुबह घर कि दीवारों पर तुम्हें लिखी हुई मिल जाऊँगी।
कवि : 'बीती ख़ुशी' जी की रचना
7 टिप्पणियाँ:
'बीती ख़ुशी' जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
लेखनी प्रभावित करती है.
ek sundar rachna shabdo ke oti mein piroi hui.
manmohit.
"लहू पहाड़ के दिल का, नदी में शामिल है,
तुम्हारा दर्द हमारी ख़ुशी में शामिल है."
वाह...वाह...।
बहुत बढ़िया शेर हैं।
बधाई।
एक उम्दा रचना.
gazab ke bhav.........behtreen
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वाह...वाह...।
बहुत बढ़िया शेर हैं।
बधाई।
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