मेरी बेबसी देखिये
बना डाला खुदा उफ़ ये बंदगी देखिये
अकीदते-बाज़ार मे खडा आदमी देखिये
समंदर भी लगने लगा है दरिया मुझे
भड़की है एक कदर तिशनगी देखिये
हर बार आईने मे शक्ल नयी सी दिखे
कितने हिस्से मे बट गयी जिंदगी देखिये
रो देते है तन्हाई मे खुद से बाते कर"मीत"
गर मिले फ़ुर्सत तो मेरी बेबसी देखिये
कवि: रोहित कुमार "मीत" जी की रचना
11 टिप्पणियाँ:
रोहित कुमार "मीत" जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
laajavaab abhivyakti hai
हर बार आईने मे शक्ल नयी सी दिखे
कितने हिस्से मे बट गयी जिंदगी देखिये
bahut khoob Rohit jee ko bahut bahut badhai
बहुत ही अच्छी पोस्ट बहुत सुंदर रचना
रो देते है तन्हाई मे खुद से बाते कर"मीत"
गर मिले फ़ुर्सत तो मेरी बेबसी देखिये
क्या कहे ......उफ्फ यह गम किसी को नसीब ना होवे .......अल्लाह इस गम से आपको बाहर निकाले....
रो देते है तन्हाई मे खुद से बाते कर"मीत"
गर मिले फ़ुर्सत तो मेरी बेबसी देखिये
क्या कहे ......उफ्फ यह गम किसी को नसीब ना होवे .......अल्लाह इस गम से आपको बाहर निकाले....
bhagvan aapka bhla kare.narayan narayan
बहुत बढ़िया रचना है
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BlueBird
गार्गी जी,
'मीत' जी की ग़ज़ल ज़िन्दगी का फलसफा है.... उदास दिल का फरमान है और आज की कड़वाहटों के खिलाफ गहरी शिकायत का दस्तावेज़ गई ! प्रभावी ग़ज़ल ! बधाई !!
भावपूर्ण रचना!!!
Sundar, dil ko cho jane wali panktiyan ... bahut khub.
हर बार आईने मे शक्ल नयी सी दिखे
कितने हिस्से मे बट गयी जिंदगी देखिये
Kuchh zindagi ajib thi, kuchh hum ajib the, jo khuli aankhon me baste the unhein band aankhon se hi dhoondate rahe, aur voh na jaane kab aakar chupke se chale gaye aur hum khwahishon ke jahan me phir tanha,
"Aibon ko Chhipa lena insaan ki fitrat hai, aaiine haqeeqat se inkar nahin karte" Ye jo chehre darpan mein badle hain vo teri hi zindagi ke saaye hain to kab talak bhagoge apne hone se."
U have written too good lines for ur life.
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