पूछता रहता है क्या
ये परिंदा इन दरख्तों से, पूछता रहता है क्या,
ये आसमां की सरहदों में, ढूंढता रहता है क्या.
जो कभी खोया नहीं, उसको तलाश करना क्या,
इन दरों को पत्थरों को, चूमता रहता है क्या.
खोलकर तू देख आँखें, ले रंग ख़ुशी के तू खिला,
गम को मुक़द्दर जान के, यूँ ऊंघता रहता है क्या.
कोई मंतर नहीं ऐसा, जो आदमियत जिला सके,
कान में इस मुर्दे के, तू फूंकता रहता है क्या.
आएँगी कहाँ वो खुशबुएँ, अब इनमें 'मशाल',
दरारों में दरके रिश्तों की, सूंघता रहता है क्या.
कवि : दीपक 'मशाल' जी की रचना
23 टिप्पणियाँ:
दीपक 'मशाल' जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
आएँगी कहाँ वो खुशबुएँ, अब इनमें 'मशाल',
दरारों में दरके रिश्तों की, सूंघता रहता है क्या.
बहुत सुन्दर रचना है मशाल जी को बधाई आपका शुक्रिया
पहली दो पंक्तियाँ बहुत सुन्दर
ये परिंदा इन दरख्तों से, पूछता रहता है क्या,
ये आसमां की सरहदों में, ढूंढता रहता है क्या.
, और बाद valee ये पंक्तियाँ भी
आएँगी कहाँ वो खुशबुएँ, अब इनमें 'मशाल',
दरारों में दरके रिश्तों की, सूंघता रहता है क्या
वाह.........
उम्दा एहसास...
उम्दा शे'र
उम्दा ग़ज़ल.......
जो कभी खोया नहीं, उसको तलाश करना क्या,
इन दरों को पत्थरों को, चूमता रहता है क्या।
___बधाई !
ये परिंदा इन दरख्तों से, पूछता रहता है क्या,
ये आसमां की सरहदों में, ढूंढता रहता है क्या.
दीपक मशाल की गज़ल के सभी शेर बढ़िया है।
आभार!
बहुत बढ़िया है!
bahut khub likha hain.
बहुत उम्दा ग़ज़ल...
खोलकर तू देख आँखें, ले रंग ख़ुशी के तू खिला,
गम को मुक़द्दर जान के, यूँ ऊंघता रहता है क्या.
-लाजबाब!! वाह!
मैं बता नहीं सकता की आप सबके प्रोत्साहन से कितना संबल और कितनी प्रेरणा मिलती है अच्छे से अच्छा लिखने की.
हरबार आपका कर्जदार हो जाता हूँ.
बहुत सुन्दर रचना,। बधाई
bahut hi khoobsoorat rachna........
मै आप के लेखन पर टिप्पणी करने के लिए अभी बहुत छोटा हूँ, पर इतना कहूँगा: क्या खूब लिखा है,
मुझे भी कोई परिंदा बना दो,
कैद कर रखा है मुझे सरहदों ने,
आके मुझे कोई आजाद करा दो...
मुझे भी कोई परिंदा बना दो,
mashal sahab aajkal ek se badhkar ek gazal pesh kar rahe hain. badhai sweekar karen aur gargi ji ko bahut bahut shukriya
दीपक 'मशाल' जी की एक और शानदार ग़ज़ल, लाजवाब.
एक-एक शेर बहुत खूबसूरत है, न सिर्फ बात और भावना अच्छी है बल्कि प्रस्तुतीकरण भी सुन्दर है. बधाई.
आदित्य शर्मा 'विकल'
अच्छी ग़ज़ल है.
वंदना मिश्रा
अच्छी ग़ज़ल है.
behatreen rachna.
Ravi Taneja
U.K.
behatreen rachna.
Ravi Taneja
U.K.
दीपक जी आपकी यह और पिछली रचना पर मैं आज शाम या कल, जब भी अवसर मिला कुछ कहना चाहूँगा. यार थोड़ा समय का अभाव रहता है. आप आज-कल में कमेन्ट बॉक्स चेक कर लीजियेगा, संभव हो तो अपनी मेल आई. डी. भेज दें ताकि आप को बता सकूं.
Sarwat ji can you please contact me at mashal.com@gmail.com. I did try to catch you but could not get your email i.d. opened.
Regards.
Bahut khoobsurat bhav hain.
( Treasurer-S. T. )
एक टिप्पणी भेजें