कुछ दिलजलों को
उतरने लगा है
नाकाम मोहब्बत का नशा
जिन्दगी जीने की जद-ओ-जहद
फिर आडे आ रही
यादों का बोझ उठाने में
बड़ा हूँ तो
बोझ भी उठाना है घर का
तो तुम्हे याद करने का
एक नायब तरीका ढूंड निकाला है
जिस से रोजी भी चलती रहती है
बस यूँ करता हूँ की
रोज कमाई की खातिर
तुम्हारी एक याद को
एक कागज पर लिखकर
बेच देता हूँ
कुछ दिलजलों को
नाकाम मोहब्बत का नशा
जिन्दगी जीने की जद-ओ-जहद
फिर आडे आ रही
यादों का बोझ उठाने में
बड़ा हूँ तो
बोझ भी उठाना है घर का
तो तुम्हे याद करने का
एक नायब तरीका ढूंड निकाला है
जिस से रोजी भी चलती रहती है
बस यूँ करता हूँ की
रोज कमाई की खातिर
तुम्हारी एक याद को
एक कागज पर लिखकर
बेच देता हूँ
कुछ दिलजलों को
कवि: अजीत त्रिपाठी जी की रचना
10 टिप्पणियाँ:
अजीत त्रिपाठी जी ,
आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
क्या खूब लिखा है जनाब ने ...वाह
waah.........kya khoob likha hai.......adbhut.
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
( Treasurer-S. T. )
वाह बेहद खुब्सूरत ...........बधाई
एक नायब तरीके से एक ऐसी बात जो किसी प्यार करने वाले से अछूती नहीं है, कही है आपने, एक अच्छी रचना लिखने पर बधाई.
waah kya baat hai....
adbhut...
Thokar kha kar hi sambhla jata hain janab.... accha likha hai.
बधाई रचना सुन्दर बन पड़ी है
AAP SABHI KO BAHUT BAHUT DHANYAWAD
एक टिप्पणी भेजें