संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

गुरुवार, 3 सितंबर 2009

कुछ दिलजलों को

उतरने लगा है
नाकाम मोहब्बत का नशा
जिन्दगी जीने की जद-ओ-जहद
फिर आडे आ रही
यादों का बोझ उठाने में

बड़ा हूँ तो
बोझ भी उठाना है घर का

तो तुम्हे याद करने का
एक नायब तरीका ढूंड निकाला है
जिस से रोजी भी चलती रहती है

बस यूँ करता हूँ की
रोज कमाई की खातिर
तुम्हारी एक याद को
एक कागज पर लिखकर
बेच देता हूँ
कुछ दिलजलों को
 
कवि: अजीत त्रिपाठी जी की रचना

10 टिप्पणियाँ:

उम्मीद 3 सितंबर 2009 को 2:35 pm बजे  

अजीत त्रिपाठी जी ,
आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन

अनिल कान्त 3 सितंबर 2009 को 4:09 pm बजे  

क्या खूब लिखा है जनाब ने ...वाह

vandana gupta 3 सितंबर 2009 को 4:16 pm बजे  

waah.........kya khoob likha hai.......adbhut.

Arshia Ali 3 सितंबर 2009 को 4:46 pm बजे  

बहुत सुंदर प्रस्तुति।
( Treasurer-S. T. )

ओम आर्य 3 सितंबर 2009 को 6:25 pm बजे  

वाह बेहद खुब्सूरत ...........बधाई

दीपक 'मशाल',  3 सितंबर 2009 को 10:09 pm बजे  

एक नायब तरीके से एक ऐसी बात जो किसी प्यार करने वाले से अछूती नहीं है, कही है आपने, एक अच्छी रचना लिखने पर बधाई.

alfaz 4 सितंबर 2009 को 7:32 pm बजे  

Thokar kha kar hi sambhla jata hain janab.... accha likha hai.

Vinay 5 सितंबर 2009 को 2:25 am बजे  

बधाई रचना सुन्दर बन पड़ी है

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