फिर कई मासूम बचपन, पल में जवां हो जायेंगे
लो यहाँ इक बार फिर, बादल कोई बरसा नहीं,
तपती जमीं का दिल यहाँ, इसबार भी हरषा नहीं .
उड़ते हुए बादल के टुकड़े, से मैंने पूछा यही,
क्या हुआ क्यों फिर से तू, इस हाल पे पिघला नहीं.
तेरी वजह से फिर कई, फांसी गले लगायेंगे,
अनाथ बच्चे भूख से, फिर पेट को दबायेंगे.
माँ जिसे कहते हैं वो, खेत बेचे जायेंगे,
मजबूरियों से तन कई, बाज़ार में आ जायेंगे.
फिर रोटियों के चोर कितने, भूखे पीटे जायेंगे,
फिर कई मासूम बचपन, पल में जवां हो जायेंगे.
कवि: दीपक "मशाल" जी की रचना
7 टिप्पणियाँ:
दीपक 'मशाल' जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
मार्मिक रचना है.
दीपक जी की इस रचना का आभार ।
"माँ जिसे कहते हैं वो, खेत बेचे जायेंगे,
मजबूरियों से तन कई, बाज़ार में आ जायेंगे."
पंक्तियों ने लुभाया ।
esa hi chalta raha to bhavishya me कई मासूम बचपन, पल में जवां हो जायेंगे.
bhavishya ka katoo sacha... bayan kiya hai aapne
कवि: दीपक "मशाल" जी की रचना पढ़वाने के लिए आभार!
दीपक जी की इस रचना का आभार ।
BEHTRIN RACHNA.
BAHUT UMDA LIKHA HAIN APNE.
LIKHTE RAHIYE.
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