हैं लुटे घरौंदे रोज वहीँ पर जहाँ पुलिस की गस्ती थी,,,,,,,
जो छूट गई है दुनिया में,, मेरी ही कुछ हस्ती थी
साहिल छोर के दरिया डूबी , मजबूत बड़ी वो कश्ती थी
उनका घर तो रौशन था पर डर था सबके चेहरे पर
एक उनके घर में रौनक थी और जलती सारी बस्ती थी
कुछ जिन्दा और मुर्दा लड़ते अल्लाह ईश के नाम पर
खामोशी मजबूरी थी कुछ जान यहाँ पर सस्ती थी
तूफानों को रंज बहुत था और चरागाँ जलते थे
कुछ अरमानो की दुनिया थी कुछ मौत यहाँ पर हस्ती थी
दिल लाख छुपाओ ताले में कोई चोर चुरा ले जायेगा
हैं लुटे घरौंदे रोज वहीँ पर जहाँ पुलिस की गस्ती थी,,,,,,,
साहिल छोर के दरिया डूबी , मजबूत बड़ी वो कश्ती थी
उनका घर तो रौशन था पर डर था सबके चेहरे पर
एक उनके घर में रौनक थी और जलती सारी बस्ती थी
कुछ जिन्दा और मुर्दा लड़ते अल्लाह ईश के नाम पर
खामोशी मजबूरी थी कुछ जान यहाँ पर सस्ती थी
तूफानों को रंज बहुत था और चरागाँ जलते थे
कुछ अरमानो की दुनिया थी कुछ मौत यहाँ पर हस्ती थी
दिल लाख छुपाओ ताले में कोई चोर चुरा ले जायेगा
हैं लुटे घरौंदे रोज वहीँ पर जहाँ पुलिस की गस्ती थी,,,,,,,
''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना
6 टिप्पणियाँ:
जहा पुलिस की गस्ती थी बेहद उम्दा गजल
bahut khoob.....
बेहद खुबसूरत ख्याल देखने को मिले आपकी हर एक पंक्तियो मे/इन भावनाओ का जबाव नही!
दिल लाख छुपाओ ताले में
कोई चोर चुरा ले जायेगा
हैं लुटे घरौंदे रोज वहीँ पर
जहाँ पुलिस की गस्ती थी,,,,,,,
अजीत त्रिपाठी जी की सुन्दर रचना को
पढ़वाने के लिए आभार!
bahut hi shandar gazal ke liye badhai bandhu..
दिल लाख छुपाओ ताले में कोई चोर चुरा ले जायेगा
हैं लुटे घरौंदे रोज वहीँ पर जहाँ पुलिस की गस्ती थी...
बेहतरीन अंदाज ...शुभकामनायें ..!!
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