संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

बुधवार, 23 सितंबर 2009

हैं लुटे घरौंदे रोज वहीँ पर जहाँ पुलिस की गस्ती थी,,,,,,,

 
 
जो छूट गई है दुनिया में,, मेरी ही कुछ हस्ती थी
साहिल छोर के दरिया डूबी , मजबूत बड़ी वो कश्ती थी

उनका घर तो रौशन था पर डर था सबके चेहरे पर
एक उनके घर में रौनक थी और जलती सारी बस्ती थी

कुछ जिन्दा और मुर्दा लड़ते अल्लाह ईश के नाम पर
खामोशी मजबूरी थी कुछ जान यहाँ पर सस्ती थी

तूफानों को रंज बहुत था और चरागाँ जलते थे
कुछ अरमानो की दुनिया थी कुछ मौत यहाँ पर हस्ती थी

दिल लाख छुपाओ ताले में कोई चोर चुरा ले जायेगा
हैं लुटे घरौंदे रोज वहीँ पर जहाँ पुलिस की गस्ती थी,,,,,,,
 
 
''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना
 

6 टिप्पणियाँ:

Mishra Pankaj 23 सितंबर 2009 को 2:07 pm बजे  

जहा पुलिस की गस्ती थी बेहद उम्दा गजल

ओम आर्य 23 सितंबर 2009 को 5:08 pm बजे  

बेहद खुबसूरत ख्याल देखने को मिले आपकी हर एक पंक्तियो मे/इन भावनाओ का जबाव नही!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 23 सितंबर 2009 को 5:17 pm बजे  

दिल लाख छुपाओ ताले में
कोई चोर चुरा ले जायेगा
हैं लुटे घरौंदे रोज वहीँ पर
जहाँ पुलिस की गस्ती थी,,,,,,,

अजीत त्रिपाठी जी की सुन्दर रचना को
पढ़वाने के लिए आभार!

वाणी गीत 24 सितंबर 2009 को 7:33 am बजे  

दिल लाख छुपाओ ताले में कोई चोर चुरा ले जायेगा
हैं लुटे घरौंदे रोज वहीँ पर जहाँ पुलिस की गस्ती थी...
बेहतरीन अंदाज ...शुभकामनायें ..!!

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