संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

आदमी


हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तणियोन का शिकार आदमी ।

रोज़ जीता हुआ, रोज़ मारता हुआ,
ज़िन्दगी से लड़ता हुआ आदमी ।

सब कुछ छूट जायेगा यही पर ,
मोह माया में जीता हुआ आदमी।

आपनि मंज़िल से हैं अनजान हैं आदमी ,
फिर भी मुसाफ़िर हैं यह आदमी ।

मिलता हैं रोज़ एक नया आदमी ,
लेकिन जीवन की दगर पे ,

हर पल अकेला आदमी । 
हर पल अकेला आदमी । 
 
कवि :  भाई गुरशरण जी की रचना

Read more...

गुरुवार, 30 जुलाई 2009

मुझे भी महजबी अपना गुलाम कर दे

बिखरा के जुल्फे फ़िर शाम कर दे
कुछ हसी पल आज मेरे नाम कर दे

मुद्दत से बहता है ये दरिया बनकर
अपने होठो से छूकर इसे जाम कर दे

अब तलक छुपा रखा है जो हिजाब मे
उठाकर परदा जलवा- ऐ-आम कर दे

कैद कर जलवा-ऐ-हुस्न की जंजीर से
मुझे भी महजबी अपना गुलाम कर दे
 
कवि: रोहित कुमार "मीत"  जी की रचना

Read more...

मंगलवार, 28 जुलाई 2009

जो करनी हो मोहब्बत

जो करनी हो मोहब्बत
जो करनी हो मोहब्बत तो ,बेवजा करना
और जो हो जाये तो डूबकर ,रजा करना

मै करूँ गलतियाँ जो मचल जाओ तुम
लुत्फ़-ऐ-दीदार करना और ,मजा करना

तुम्हारी खैरियत मेरी जिम्मेदारी रहेगी
मेरे लिए अपनी ही नमाज़ ,अजां करना

रूठना तो रोना गले लगकर, मना लूँगा
दूर होकर दिल-ऐ-नादान को ना सजा करना

कभी हो मौका तो आ जाना और लिपट जाना
रश्म-ओ-रिवाज से एक बार दगा करना

सुनो गर ना रहूँ शरीक-ऐ-जन्नत हो जाऊँ
मुस्कुराना और मोहब्बत का फ़र्ज़ अदा करना

अगर ऐसे ही छोड़ जाऊँ दुनिया मै ''अजीत''
कफ़न में आँचल रख आगोश-ऐ-कज़ा करना
 
कवि : ''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना

Read more...

गुरुवार, 23 जुलाई 2009

सच कहता हूँ


सच कहता हूँ
प्रेम निश्वार्थ था तुमसे मुझे
पर तुम्हारे जाने का दर्द
सृजन का माध्यम बन गया ,,,

मै रह ही नहीं पाया
समर्पित
प्रेम के कलरव एकांत के प्रति
न नव सुरम्य जीवन साध्य के प्रति
हर लम्हे को उतारा है मैंने
शब्दों से दिल के बाहर भी
नयन सुख से मिलन की हर बेला तक
मैंने समर्पण को समर्पित कर दिया है ,,

पर अभी भी एक रिश्ता है तुम्हारा
मेरे सृजन से
दर्द ,, दोनों में है ,,,,

तो सोचता हूँ
त्याग दूँ तुम्हारी यादों को
जिस से दर्द में डूबा
सृजन तो बंद हो ,,,

आखिर जब मै समर्पित ही नहीं रहा
तुम्हारे एकान्त तुम्हारे मान के प्रति
तो ये खोखला सृजन क्यूँ
तुम्हारा नाम लेकर
तुम्हारे नाम के लिए
 
कवि : ''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना

Read more...

बुधवार, 22 जुलाई 2009

आ जाओ सँवरे......!!

पथ पखारू, रह निहारु



आ जाओ सँवरे........जी आ जाओ सँवरे







रह ताकत, अखियाँ पत्थराई



तुम्हारे लिये है, दुनिया बिसराई



सुन लो अरज सँवरे



आ जाओ सँवरे........जी आ जाओ सँवरे







मैं हूँ तुम्हारी, तुझ में ही खोई



भूली हूँ सब कुछ, मेरा नही कोई



ले लो शरण सँवरे



आ जाओ सँवरे........जी आ जाओ सँवरे







जब से है जाना, मैं हूँ तुम्हारी



भूली हूँ सब कुछ , मेरा दोष नही कोई



दर्शन दो सँवरे



आ जाओ सँवरे........जी आ जाओ सँवरे







तुम्ही मेरा जीवन, तुम्ही मेरी साँसे



तुम्ही मेरी मुक्ति, तुम्ही मेरे सहारे



पार लगा दो सँवरे



आ जाओ सँवरे........जी आ जाओ सँवरे







काम , क्रोध, लोभ, मोह , माया सब मुझ से जुडा है



श्रष्ठी का कैसा ये जाल बिछा है



कठपुतली से नाच रहे है



मुक्ति दो सँवरे



आ जाओ सँवरे........जी आ जाओ सँवरे



आ जाओ सँवरे........जी आ जाओ सँवरे



Read more...

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है......!!

ये बात है खुद से ही ....जिस के पास खुद के लिये कुछ नही है...,
शायद! वो खुद भी नही...

आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है ,
कल मैं पूरी थी तुम्हारी आज मन भी नही है।
अब तो बस, खाली मकान-सा खण्ङर बचा है ,
इसके विराने भी, गूंजते शोर से काम नही है ।
आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है॥
कांच का सा मन, फूल का सा तन,
धीरे-धीरे देख पत्थर बन गया है।
पत्थरो में जान तो है , अरमान नही है,
आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है॥
आज में कहती हूँ, मुझ से दूर हो जा,
अब तो तुझ में रहने की हिम्मत नही है।
आज मेरे पास तुम्हारे लिये कुछ नही है॥

Read more...

सोमवार, 20 जुलाई 2009

और कहीं अरमान धुल रहे थे


आदम कद दीवारों से घिरा आँगन
दो अल्हड जवानियों को
मिलाने लगा था,,
की साथ दिया तुने भी खुदा
हर बूँद के साथ
मिलन को सुहावना बना दिया
झमाझम करके बरसते बादलों से ,,
होंठ थरथरा उठे थे ,,
मिलन का नव विस्तार हो रहा था .

उन्ही दीवारों के बाहर
कोई और भी था
एक लड़का और हाथ में बच्ची
फटेहाल बेहाल , जाने किस हाल में
एक छत होती थी सर पे रोज
सूखे आसमान की ..
आज तुने वो भी छीन ले खुदा
बच्ची मरने की सी हालत में आ गई है
और लड़के के होंठ थरथरा उठे हैं
शायद पेट भूखा होने से ..
शायद ठण्ड ज्यादा है ,,
या शायद नवजात की बेबसी पर
..
बरसात तो की खुदा
मगर ये क्या हश्र हुआ
बरसात ने दो को मिलाया
दो को मिटाने जुट गई

बरसात में अरमान तो
दोनों तरफ थे
बस फर्क ये था मेरे खुदा
कहीं अरमान घुल रहे थे
और कहीं
अरमान धुल रहे थे
 
कवि : ''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना

Read more...

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

अब हम यहाँ रहें कि वहाँ रहें........!!

अपने आप में सिमट कर रहें
कि आपे से बाहर हो कर रहें !!
 
बड़े दिनों से सोच रहे हैं कि
हम अब यहाँ रहें या वहाँ रहें !!
 
दुनिया कोई दुश्मन तो नहीं
दुनिया को आख़िर क्या कहें !!
 
कुछ चट्टान हैं कुछ खाईयां
जीवन दरिया है बहते ही रहे !!
 
कुछ कहने की हसरत तो है
अब उसके मुंह पर क्या कहें !!
 
जो दिखायी तक भी नहीं देता
अल्ला की बाबत चुप ही रहें !!
 
बस इक मेहमां हैं हम "गाफिल "
इस धरती पे तमीज से ही रहें !!
 
कवि : राजीव जी की रचना

Read more...

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!

कब यहाँ से वहाँ.....कब कहाँ से कहाँ ,
कितनी आवारा है ये मेरी जिंदगी !!
कभी बनती सबा कभी बन जाती हवा ,
कितने रंगों भरी है मेरी ये जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी -जिंदगी-जिंदगी !!
नाचती कूदती-चिडियों सी फूदती ,
चहचहाती-खिलखिलाती मेरी जिंदगी !!
जिंदगी -जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
याद बनकर कभी,आह बनकर कभी ,
टिसटिसाती है अकसर मेरी जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
जन्म से मौत तक,खिलौनों से ख़ाक
तक
किस तरह बीत जाती है ये तन्हाँ जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!


कवि : राजीव जी की रचना

Read more...

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

मुश्किलें......!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जिनके हाथ इतने मजबूत हैं कि

तोड़ सकते हैं जो किसी भी गर्दन....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जो कर रहे हैं हर वक्त-

किसी ना किसी का.....

या सबका ही जीना हराम....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जिनके लिए जीवन एक खेल है...

किसी को मार डालना ......

उनके खेल का इक अटूट हिस्सा !!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जो देश को कुछ भी नहीं समझते...

और देश का संविधान....

उनके पैरों की जूतियाँ....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जो सब कुछ इस तरह गड़प कर रहे हैं...

जैसे सब कुछ उनके बाप का हो.....

और भारतमाता !!........

जैसे उनकी इक रखैल.....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जिनको बना दिया गया है...

इतना ज्यादा ताकतवर.....

कि वो उड़ा रहे हैं हर वक्त.....

आम आदमी की धज्जियाँ.....

और क़ानून का सरेआम मखौल.....!!

...........दरअसल ये मुश्किलें......

हम सबके ही साथ हैं.....

मगर मुश्किल यह है....

कि..............

हमें जिनके साथ जीने में.....

अत्यन्त मुश्किलें हैं.....

उनको.........

कोई मुश्किल ही नहीं......!!??
 
कवि : राजीव जी की रचना

Read more...

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

इतना भी जुड़ ना जाए..

कभी धुप चिलचिलाये
कभी शाम गीत गाये....!!
जिसे अनसुना करूँ मैं
वही कान में समाये.....!!
उसमें है वो नजाकत
कितना वो खिलखिलाए !!
सरेआम ये कह रहा हूँ
मुझे कुछ नहीं है आए...!!
चाँद भी है अपनी जगह
तारे भी तो टिमटिमाये...!!
जिसे जाना मुझसे आगे
मुझपे वो चढ़ के जाए...!!
रहना नहीं है "गाफिल"
इतना भी जुड़ ना जाए...!!


कवि : राजीव जी की रचना

Read more...

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

कह दो उन से

कह दो उन से , उनका ख़याल आया था
क्यूँ नहीं है मेरी ये एक सवाल आया था

थमी हैं साँसें बेचैन है दिल , उनसे कहो
आँखों के सूखे समंदर में बवाल आया था ..
 
कवि : ''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना

Read more...

पर गम बता ये तमाम क्या है

वादों का जो हंसी सफ़र है बता ये कैसे मकाम का है
महकती सांसों में गम है मेरे बता ये कैसे इनाम का है

तुम्हे मुकम्मल जहाँ मिलेगा दुआ जो मेरी कुबूल होगी
हिज्र की रातों में सिकना मुझे है ये सितम कैसे मकाम का है

हुश्न की चादर तले तू कत्ल है और कातिल मेरी भी तू है
मै हश्र का दिन हूँ तेरे लिए तू बता की तेरा पैगाम क्या है

मैंने लिख दिए हैं हजार ख़त ये नज्म तुझ पे निसार हो
मुझे मौत होगी नसीब जो कह की तेरा पयाम क्या है

तुझे शुबह की हो रंगीनिया तुझे शब् में कोई नसीब हो
मुझे बता की मेरा नसीब क्या है मेरी बिलखती शाम क्या है

तुम्हे सारी खुशियाँ मिले यहाँ तुम्हें गम का साया न मिले
मुझे तेरी यादें कबूल हैं पर गम बता ये तमाम क्या है ........

कवि : ''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना

Read more...
Blog Widget by LinkWithin
" अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का , यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है…."
अपनी रचनाएं ‘अभिव्यक्ति' में प्रकाशित करें रचनाकारों से अनुरोध है कि 'अभिव्यक्ति' में अपनी रचना के निःशुल्क प्रकाशन हेतु वे समसामयिक रचनाएं जैसे - राजनैतिक परिदृश्य, स्वास्थ्य, जीवन, भावनात्मक संबंधों जैसे- दोस्ती, प्यार, दिल कि बातें आदि से सम्बन्धित लेख, कहानी, कविता, गज़ल व चुटकले आदि भेज सकते हैं. भेजी गयी रचनाएं मौलिक, अप्रकाशित और स्वरचित होनी चाहिए । रचनाएं यूनिकोड में ही स्वीकार्य होंगी । आप की स्वीकृत रचनाएँ आप के नाम के साथ ‘अभिव्यक्ति' में प्रकाशित की जायेंगी। रचनाएं ई-मेल द्वारा भेजी जा सकती हैं । ई-मेलः gargiji2008@gmail.com
"इस ब्लॉग पर पधारने के लिये आप का सहर्ष धन्यवाद"
यहाँ प्रकाशित रचनाओं, विचारों, लेखों-आलेखों और टिप्पणियों को इस ब्लॉग व ब्लॉग लेखक के नाम के साथ अन्यत्र किसी भी रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। (Reproduction allowed in any form strictly with the name of the Blog & Bloger.)

View My Stats

  © Blogger templates Psi by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP