प्रेमानुभूती
वक्त का पहिया चलता जाता
नये - नये ये रूप दिखता
हर पल एक सीख दे जाता
कि हमको है बस चलते जाना
बचपन छोड युवा बन जाऊ
चाहत थी कोई अपना पाऊ
मन में उनका अरमान लिये
आंखो में एक सपना लिये
चली जा रही थी कोमल मन अपना लिये
दौडती भागती ज़िन्दगी में
वो मिल गये हमे
आराम की ठंडी सांस की तरह
सांसो से साँसे मिली
और वो दिल के मेहमा हुए
बिना कोई किराया- भाड़ा दिये
कह दिया दिल ने दिल से
सुनो हम तुम्हारे हुए
सपनो में कल तक जो साथ था
अब मेरी उंगली थामे चलने लगा
ऐसा लगा खोया सा कोई
ख्वाब सच होने लगा
वो मुझ में और मैं
उन में खोने लगी
वक्त फिर कुछ और भी महरबा हुआ
और न जाने कब उनका मन मेरा हुआ
आंखो ही आंखो में दुनिया सजी
और दिल एक दूसरे का बसेरा हुआ
चल पड़ी मेरी नैया प्यार की लहर पर
वो इस नैया का खिव्या हुआ
हर दिन मेरा उत्सब और रात मयखाना हुआ
जैसे हर लम्हे पर उनका ही पहरा हुआ
उसके होठो ने मेरे होठो को छू कर कहा
कि उम्र भरके लिये मैं तेरा हुआ
तुझ में खो कर ही तो घर मेरा
फूलो का बगीचा हुआ
जब उसने अपनी अखियाँ खोली
घर मेरा रोशन हुआ
जब गूंजी उसकी किलकारी
तेरा मेरा सपना हमारा हुआ
उसने हंस कर भर दी हमारी झोली
तभी तो हमारा प्यार पूरा हुआ
उसका सपना ही अब हमारा सपना हुआ
देखते ही देखते अपना दुलारा
किसी और का साजना हुआ
हंस - रो कर जी लिया हर पल
प्यार नही , पर अब शरीर बूढ़ा हुआ
पर तेरा प्यार दिन -दिन
और भी गहरा हुआ
जब छोटू का छोटू
चश्मे से तेरे खेला किया
फिर मेरा हास के कहना
अब तो तू बूढा हुआ
आँख भर आई मेरे
जब मेरा पल्लु पकड़ भर
तेरा यू कहना हुआ
खुशी है की तेरे साथ में बूढा हुआ
हम हमेशा साथ होंगे मेरा फिर कहना हुआ
और फैल गया हमारा प्यार
एक अविरल धार-सा हर तरफ
वक्त की आँधी चली और तुफा आ गया
तेरे कंधे पर साज कर
ये तन मेरा इस दुनिया से रुख्सत हुआ
और इस मिट्टी का मिट्टी में ही मिलना हुआ
जब तू रोया फूट कर तो आत्मा चिल्ला उठी
मैं दूर नही हूँ तुमसे
मिट्टी थी मिट्टी में मिल गई
पर मन और आत्मा का तुम से ही संगम हुआ
और जब तुम अकेला होते हो उस आराम कुर्सी पर
मैं देखती हूँ तुम्हे, और तुम भी तो महसूस करते हो
जब ढूंढते हो खुद में ही
और दीवारो से मेरे बातैं करते हो
तो ये पीड़ा मुझ से सही नही जाती
तुम से मिलने को तड़प उठती है मेरे रुह
तब में खुद से वादा करती हूँ
हर जन्म तेरे ही पत्नी बनने का इरादा रखती हूँ
जब मिलैगे साँवरे के द्वार पर हम
तब रुह की रुह से मुलाकात होगी
और हमारे लौकिक नही अलोकिक प्रेम की शुरुआत होगी
और वहाँ मृत्यु का बंधन नही होगा
वहा अमित अमर प्रेम होगा .....
बस प्रेम....हमारा प्रेम
और ये वक्त जिसने हमे मिलाया
हमे दूर करने में लाचार होगा
अगर कुछ शेष होगा तो वो होगा हमारा प्रेम
10 टिप्पणियाँ:
बढ़िया गद्य-गीत है।
बधाई।
सुन्दर प्रस्तुति अच्छी रचना बधाई.
बस प्रेम....हमारा प्रेम
और ये वक्त जिसने हमे मिलाया
हमे दूर करने में लाचार होगा
अगर कुछ शेष होगा तो वो होगा हमारा प्रेम
bahut hi sundar rachana .......bas shesh ek ehasas hi hai ........aapake dwara likhit panktiyan jadu vikher diya ho ......manas patal par
prem geet, aaj isi ki jaroorat hai.
wah ji wah kya kahun...
bahut he achhi abhvyakti...
mere blog par bhi aapka swagat hai...
गार्गी ;
तुम्हारी कोशिश बहुत अच्छी है , कामयाब है ..
कविता का अंत बहुत ही शशक्त है .. you will definitely shine ...
कविता में तुमने एक कथा को बहुत अच्छा रूप देकर के शब्दों के प्रवाह में बाँधा है ..
मेरी बधाई स्वीकार करो..
i hope that many more such wonderful poems will be written by you . god bless you .
regards
vijay
इस सुन्दर पंक्तियों को अगर तुम मन दर्पण पर
लिखती तो और भी सुन्दर लगती , पर फिर भी बखूबी वर्णन किया है. बढ़िया लिखा है. बधाई.
Dil se niklee rachnaa.
{ Treasurer-S, T }
जब छोटू का छोटू
चश्मे से तेरे खेला किया
फिर मेरा हास के कहना
अब तो तू बूढा हुआ
आँख भर आई मेरे
जब मेरा पल्लु पकड़ भर
तेरा यू कहना हुआ
खुशी है की तेरे साथ में बूढा हुआ
मन को छू लेने वाली बेहद सुन्दर रचना है...क्या गहरी बात कही है....
कविता का कथात्मक प्रवाह अच्छा लगा.
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