वो पगली
मै रुका रहता हूँ ,
अक्सर वहीँ ,
जहाँ मिल जाती थीं ,
नजरें उस से ,
और वो मुस्कुरा देती थी .,
अब भी रहता हूँ ,
इन्तजार में , मै,
की निकलेगी कभी ,
फिर मिलेंगी नजरें
और , वो मुस्कुरा देगी
और इसी पश-ओ-पेश में
मेरे ख्यालों में ,
मेरे पागलपन पर,
वो पगली ,
मुस्कुरा देती है
''अजीत त्रिपाठी'' जी की रचना
16 टिप्पणियाँ:
अजीत जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
intezar karenge ki kabhi to uski nazar milengi kabhi to uska didar hoga ....koi sak nahi is me ki rachana sandar hai ..thanx ...aisi hi rachana e aap likhte rahain ....ise request samjlo .....
-----eksacchai {AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
सुन्दर कविता है
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1. चाँद, बादल और शाम
2. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
बहुत सुंदर चयन।
ek ankahe aur shuruati prem ki sundar abhivyakti...
waah.........gazab kar diya.
Man ko bhaa gaye aapki kavita.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
:)
मन प्रसन्न हो गया पगली
और इसी पश-ओ-पेश में
मेरे ख्यालों में ,
मेरे पागलपन पर,
वो पगली ,
मुस्कुरा देती है bahut bavpuran kavita...
मनभावन कविता .......खुब्सूरत ख्याल से सज्जी और सवरी कविता......बधाई
Man ko chhu gayi.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
वाह क्या बात है।
अपने मनोभानोभावो को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई
bahut sunder kavita hai
atyant sundar hai...
likhte rahiye..
thanks
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