मगर तेरा ख्वाब कोई दूसरा है
क्या बताये हम कि क्या हुवा है
सुलगता हुवा दिल का आशिया है
कही दम घुट ना जाए सीने मे
हर एक सिम्त धुवा ही धुवा है
वादों -कसमो कि लाज रखनी है
हम कैसे कह दे कि तू बेवफा है
मुझको ना यादो पे यकी है अब
ख्यालो से तो अपना सिलसिला है
मेरे दिल मे तेरी चाहत है अब भी
मगर तेरा ख्वाब कोई दूसरा है
कवि: रोहित कुमार "मीत" जी की रचना
5 टिप्पणियाँ:
रोहित कुमार "मीत" जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
मैं हर उस व्यक्ति का नमन करता हूँ जो स्वयं लेखन करता है, किसी से लिखवाता नहीं. लेकिन मैं स्पष्ट बोलता हूँ, शायद यही वजह है कि बहुत से लोग मुझे पसंद नहीं करते. आप के लेखन को प्रणाम, किन्तु अभी बहुत कच्चापन है. किसी विद्वान से कुछ अरसे इस विद्या पर कोचिंग लें, आप की प्रतिभा में निखार आ जायेगा.
(यदि मेरा कमेन्ट पसंद न आया हो तो इसे डिलीट कर दीजियेगा फिर भी, कच्चापन तो बरकरार रहेगा ही ).
सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!
ख़ूबसूरत अशआर
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great composition...
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