फिर नाम कैसे ले
रिश्ता कातिल से रहनुमा का।
जैसे आजाब दोस्त की दुवा का॥
उम्र भर अब दर्दे-जुदाई सहना है।
मिला है ये शिला मुझे वफ़ा का॥
इंसानियत से देखो तुम इन्सा को।
मिल जायेगा रास्ता तुम्हे खुदा का॥
बच्चो मे तलाश कर उसे पा भी लो ।
देरो-हरम से नहीं वास्ता देवता का ॥
ख्यालो को ख्यालो मे नहीं आने देते।
फिर नाम कैसे ले"मीत" उस बेवफा का॥
कवि: रोहित कुमार "मीत" जी की रचना
6 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब...वाह
नीरज
Khoobsurat gazal kahee hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut badiya likha hai.
very rhyming..........
nice one.
hmmmmmmmm........... very nice........
बहुत बढिया।
badhiya ...bahut badhiya
-----eksacchai {AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
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