संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

सोमवार, 17 अगस्त 2009

ये प्रेम है ......!!

ये प्रेम है ......!!
दुख तो हर हाल में देगा।
तेरे साथ होने पर भी .....
तेरे जाने के मौसम मे भी!
सोचती हूँ ......!!
दुखी होना है अगर हर हाल में......
तो तेरे साथ में रह कर दुखी होना बहतर है ।
रोने को एक कन्धा तो होगा ......
दुश्मन ही सही.... अपना -सा एक बन्दा तो होगा !!
ये प्रेम है .........!!!
दुख तो हर हाल में देगा।
दुख से सुख की अनुभूती है।
प्रेम बिन ज़िन्दगी अधूरी है ।
प्रेम से सारी खुशिया है।
प्रेम बिन ज़िन्दगी सूखी भूमि है।
प्रेम है तो सुन्दरता है।
अनुभूती है ।
खुशिया है ।
दुख है ।
आंसू है ।
संवेदना है ।
सारे रिश्ते नाते है।
जो अपनापन समझता है !!
ये प्रेम है .......
दुख तो हर हाल में देगा !!
दुख तो हर हाल में देगा !!!

12 टिप्पणियाँ:

विनोद कुमार पांडेय 17 अगस्त 2009 को 2:04 pm बजे  

प्रेम की बेहतरीन अभिव्यक्ति..
सुंदर कविता..

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) 17 अगस्त 2009 को 2:20 pm बजे  

गार्गी जी प्रेम की बहुत ही सुखद अनुभूति पेश की आप ने चलो मै भी कुछ कह देता हूँ ,,,
प्रेम निशब्द अंतरात्मा की आवाज है ,,,
गहन आत्म संतुस्टी का साज है,,,
विचारकता की प्रष्ठ भूमि पर खडा,,
प्रगति का निनाद है ,,,
अध्यात्म की पराकास्ठा है ,,
और शून्य का नाद है
मेरी बधाई स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक

ओम आर्य 17 अगस्त 2009 को 3:21 pm बजे  

प्रेम मे डुबी कविता......... जहान है प्यार खुदा है प्यार जिन्दगी है प्यार .............तिनो लोक है प्यार .......और क्या कहे प्यार ये है और वो है प्यार काल का बन्धन नही होता ......प्यार प्यार प्यार है ............

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 17 अगस्त 2009 को 3:23 pm बजे  

दुखी होना है अगर हर हाल में......
तो तेरे साथ में रह कर दुखी होना बेहतर है ।
रोने को एक कन्धा तो होगा ......
दुश्मन ही सही....
अपना-सा एक बन्दा तो होगा !!

बहुत सुन्दर।
बधाई।

alfaz 17 अगस्त 2009 को 3:24 pm बजे  

ये प्रेम है .......
दुख तो हर हाल में देगा !!

यह इश्क नहीं आंसन ,
आग का दरिया हैं , और डूब के जाना है .
Love is a sweet poison.......
Good lines but make it more rhyming
in future.

Creative Manch 17 अगस्त 2009 को 7:26 pm बजे  

दुख से सुख की अनुभूती है।
प्रेम बिन ज़िन्दगी अधूरी है ।
प्रेम से सारी खुशिया है।
प्रेम बिन ज़िन्दगी सूखी भूमि है।
प्रेम है तो सुन्दरता है।
-------------------------

बहुत ही सुंदर कविता !
दिल को करीब से छूते भाव !

अच्छा लगा यहाँ आना !
मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !!!

संजीव गौतम 17 अगस्त 2009 को 7:42 pm बजे  

जीवन का सबसे सुन्दर सच. बहुत अच्छी तरह से अभिव्यक्ति दी है आपने.
ये प्रेम है ......!!
दुख तो हर हाल में देगा।
तेरे साथ होने पर भी .....
तेरे जाने के मौसम मे भी!

वाह शुरूआत ही बेहतरीन है.

Fauziya Reyaz 17 अगस्त 2009 को 7:46 pm बजे  

gargi ji pehle to blogging ki duniya mein swagat karne ke liye shukriya....aapki kavita behad khoobsurat hai....prem me milne wala sukh itna hota hai ki dukh uske saamne kuch nahi rehta...

श्यामल सुमन 18 अगस्त 2009 को 7:59 am बजे  

खूबसूरती से आपने अपने भाव को रचना में समेटा है।

मिलन में नैन सजल होते हैं विरह में जलती आग।
प्रियतम प्रेम है दीपक राग।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

vandana gupta 18 अगस्त 2009 को 2:13 pm बजे  

prem ke bhavon ko khoobsoorti se sanjoya hai........badhayi

डिम्पल मल्होत्रा 22 अगस्त 2009 को 6:23 pm बजे  

pahli baar apke blog pe aayee hun...sab kavitaye to nahi padi..par jitni bhi padi sabse achhi yahi lagi...pyaar ke arth darshati kavita....

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