कोई ऐसी दवा दे दे, कि बस अतीत बन जाऊँ....
कोई इक खूबसूरत, गुनगुनाता गीत बन जाऊँ ।
मेरी किस्मत कहाँ ऐसी, कि तेरा मीत बन जाऊँ॥
तेरे न मुस्कुराने से, यहाँ खामोश है महफ़िल।
मेरी वीरान है फितरत, मैं कैसे प्रीत बन जाऊँ।।
तेरे आने से आती है, ईद मेरी औ दीवाली।
तेरी दीवाली का मैं भी, कोई एक दीप बन जाऊँ।।
लहू-ए-जिस्म का इक-इक, क़तरा तेरा है अब।
सिर्फ इतनी रज़ा दे दे, मैं तुझपे जीत बन जाऊँ।।
नाम मेरा भी शामिल हो, जो चर्चा इश्क का आये।
जो सदियों तक जहाँ माने, मैं ऐसी रीत बन जाऊँ।।
मुझसे देखे नहीं जाते, तेरे झुलसे हुए आँसू।
मेरी फरियाद है मौला, मैं मौसम शीत बन जाऊँ।।
कहाँ जाये खफा होके, 'मशाल' तेरे आँगन से।
कोई ऐसी दवा दे दे, कि बस अतीत बन जाऊँ।।
कवि : दीपक चौरसिया जी की रचना
16 टिप्पणियाँ:
दीपक चौरसिया जी , आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
bahut badhiyaa rachanaa hai.
तेरे न मुस्कुराने से, यहाँ खामोश है महफ़िल।
मेरी वीरान है फितरत, मैं कैसे प्रीत बन जाऊ
दिल को छू लेने वाली पंक्ति है
मेरे पास शब्द नहीं है तारीफ़ में आपकी.
"आशियाने में तू मेरे रहे ना रहे ,
तेरी मजार का इक पत्थर ही बन जाऊ"
दीपक जी तो बहुत कविता लिखते हैं
आप सभी के प्रोत्साहन के लिए ह्रदय से धन्यवाद्, बस एक प्रार्थना है कि दीपक चौरसिया को चौरसिया कि बजे 'मशाल' पढें क्योंकि मैं अपने देश को जातिवाद में बनता नहीं देख सकता. वो सिर्फ एक मजबूरी ही है कि यदि सरकारी कागजों पर रहना है तो जाती को लेकर चलना पड़ता है.
आभार
लहू-ए-जिस्म का इक-इक, क़तरा तेरा है अब।
सिर्फ इतनी रज़ा दे दे, मैं तुझपे जीत बन जाऊँ।।
vaah vaah kyaa baat kahee शुभकामनायें
लहू-ए-जिस्म का इक-इक, क़तरा तेरा है अब।
सिर्फ इतनी रज़ा दे दे, मैं तुझपे जीत बन जाऊँ।।
vaah vaah kyaa baat kahee शुभकामनायें
दीपक चौरसिया जी को इस सुन्दर रचना के लिए बधाईष
तेरे आने से आती है, ईद मेरी औ दीवाली।
तेरी दीवाली का मैं भी, कोई एक दीप बन जाऊँ।।
लहू-ए-जिस्म का इक-इक, क़तरा तेरा है अब।
सिर्फ इतनी रज़ा दे दे, मैं तुझपे जीत बन जाऊँ।।
waaaaaaaah bahut hi sunder.
वाह !
तेरे आने से आती है, ईद मेरी औ दीवाली।
तेरी दीवाली का मैं भी, कोई एक दीप बन जाऊँ।।
__________अच्छी रचना..............
बधाई !
anothe amazing post...
thanks for sharing this one...
वाह ! बहुत सुंदर ग़ज़ल
really good one.
congrats for writing such a good recitation
"alfaz nahi ki kis alfaz me aisi sundar rachana ke liye aapko dhanyawad kahu "
-----eksacchai {AAWAZ}
http://eksacchai.blogspot.com
bhut dard hai is gazal me.... apni kitni bhawnao ko btaoge isme.. nice gazal
dil ko chou lene wali rachna hai,bahot badiya,
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