सैलाबे-जुनूँ-ए-इश्क, तुम ही सह नहीं पाए.....
कभी मैं चल नहीं पाया, कभी वो रुक नहीं पाए।
मेरे जो हमसफ़र थे, साथ वो रह नहीं पाए।।
मेरे घर में नहीं आई, कितने सालों से दीवाली।
तू आ जाये तो आँगन में, अँधेरा रह नहीं पाए।।
लगाते हैं सभी तोहमत, मैं तुझसे हार जाता हूँ।
मेरी हस्ती ही ऐसी है, कि कोई टिक नहीं पाए।।
मैं माँझी हूँ मगर खुद न, कभी उस पार जा पाया।
मेरे अरमाँ ही लहरों पे, कभी भी बह नहीं पाए।।
कमर टूटी नहीं मेरी, किसी की जी-हुजूरी से।
बोझ बढ़ता गया हर पल, पर काँधे झुक नहीं पाए।।
ना फ़रेब कह देना, सिला-ए-चाहत कों 'मशाल'।
सैलाबे-जुनूँ-ए-इश्क, तुम ही सह नहीं पाए।।
मेरे जो हमसफ़र थे, साथ वो रह नहीं पाए।।
मेरे घर में नहीं आई, कितने सालों से दीवाली।
तू आ जाये तो आँगन में, अँधेरा रह नहीं पाए।।
लगाते हैं सभी तोहमत, मैं तुझसे हार जाता हूँ।
मेरी हस्ती ही ऐसी है, कि कोई टिक नहीं पाए।।
मैं माँझी हूँ मगर खुद न, कभी उस पार जा पाया।
मेरे अरमाँ ही लहरों पे, कभी भी बह नहीं पाए।।
कमर टूटी नहीं मेरी, किसी की जी-हुजूरी से।
बोझ बढ़ता गया हर पल, पर काँधे झुक नहीं पाए।।
ना फ़रेब कह देना, सिला-ए-चाहत कों 'मशाल'।
सैलाबे-जुनूँ-ए-इश्क, तुम ही सह नहीं पाए।।
कवि : दीपक 'मशाल' जी की रचना
14 टिप्पणियाँ:
दीपक 'मशाल' जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
लाजवाब रचना, बेहतरिन अभिव्यक्ति । बहुत सुन्दर
बहुत बढिया व सुन्दर रचना है।एक बेहतरीन रचना पढवाने के लिए धन्यवाद।
दीपक जी कहिए, ये मशाल जलाए रखें।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
कभी मैं चल नहीं पाया, कभी वो रुक नहीं पाए।
मेरे जो हमसफ़र थे, साथ वो रह नहीं पाए।।
कमर टूटी नहीं मेरी, किसी की जी-हुजूरी से।
बोझ बढ़ता गया हर पल, पर काँधे झुक नहीं पाए।।
दोनो शेर लाजवाब हैं बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। देपक जी को बधाई
कभी मैं चल नहीं पाया, कभी वो रुक नहीं पाए।
मेरे जो हमसफ़र थे, साथ वो रह नहीं पाए।।
कमर टूटी नहीं मेरी, किसी की जी-हुजूरी से।
बोझ बढ़ता गया हर पल, पर काँधे झुक नहीं पाए।।
दोनो शेर लाजवाब हैं बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। देपक जी को बधाई
एक एक पंक्तिया दिल को छू गयी ......जिन्दगी को बडी सकून दिया पढने के बाद ......एक बेहतरिन रचना
दीपक मशाल जी की इस सुन्दर रचना को पढ़वाने के लिए आभार!
एक शानदार ग़ज़ल पेश की है अपने.
बधाई. काबिल इ तारीफ.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। लाजवाब गजल, दीपक जी को बधाई ।
ग़ज़ल प्रकाशित करने के लिए गार्गी जी को धन्यवाद् और इतने प्यार के लिए आप सबका बहुत बहुत आभारी हूँ.
behad khoobsurat...
kyaa baat hai.....dipak ji......khoob likha hai aapne.......aapki "mashaal"isi tarah jalti rahe....!!
bas isi tarah mashaal gauravanvit karti rahey sab dishaaon ko...
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