संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

तफसील

जीने का राज़ , मोहब्बत में पा लिया.
अपनों के दर्द को, अपना बना लिया.
ज़िन्दगी में कोई तनहा न कहे ,
इसलिए दर्द को अपना हमदम बना लिया.
क्वहैशेय तो हर दिल में जनम लेती हैं.
लोग तफसील न करे तुम्हारे बारे में ,
हमने दिल को ही कैदखाना बना लिया.
तुम साथ दो न दो ,तुम्हारे अश्कों
को तो अपना हमसफ़र बना लिया.
नसीब भी वफाई के काबिल नहीं
गमो को अपना रहनुमा बना लिया.
टूट के बिखर न जाओ शीशे की तरह,
मोम से दिल को आज पत्थर बना लिया।

कवि : गुरशरण जी की रचना

8 टिप्पणियाँ:

उम्मीद 20 अगस्त 2009 को 11:40 am बजे  

गुरशरण जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन

सदा 20 अगस्त 2009 को 12:49 pm बजे  

टूट के बिखर न जाओ शीशे की तरह,
मोम से दिल को आज पत्थर बना लिया।

बंहुत ही सु्न्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

Arshia Ali 20 अगस्त 2009 को 2:03 pm बजे  

सुंदर एवं सार्थक विचार।
( Treasurer-S. T. )

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 20 अगस्त 2009 को 5:04 pm बजे  

"जीने का राज़ , मोहब्बत में पा लिया.
अपनों के दर्द को, अपना बना लिया"

बहुत सुन्दर!

जीने का राज़ , हमने मोहब्बत में पा लिया।
दुनिया का दर्द, हमने जिगर में बसा लिया।।

श्यामल सुमन 21 अगस्त 2009 को 10:35 am बजे  

जीने का राज़ , मोहब्बत में पा लिया.
अपनों के दर्द को, अपना बना लिया.

सुन्दर पंक्तियाँ गार्गी जी।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

अर्चना तिवारी 21 अगस्त 2009 को 11:34 pm बजे  

बेहतरीन अशआर...सुंदर ग़ज़ल

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