तफसील
जीने का राज़ , मोहब्बत में पा लिया.
अपनों के दर्द को, अपना बना लिया.
ज़िन्दगी में कोई तनहा न कहे ,
इसलिए दर्द को अपना हमदम बना लिया.
क्वहैशेय तो हर दिल में जनम लेती हैं.
लोग तफसील न करे तुम्हारे बारे में ,
हमने दिल को ही कैदखाना बना लिया.
तुम साथ दो न दो ,तुम्हारे अश्कों
को तो अपना हमसफ़र बना लिया.
नसीब भी वफाई के काबिल नहीं
गमो को अपना रहनुमा बना लिया.
टूट के बिखर न जाओ शीशे की तरह,
मोम से दिल को आज पत्थर बना लिया।
कवि : गुरशरण जी की रचना
8 टिप्पणियाँ:
गुरशरण जी आप के इस सहयोग के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद .
आशा है भविष्य मैं भी आप का सहयोग और प्रेम इसी प्रकार अभिव्यक्ति को मिलता रहेगा , और आप के कविता रुपी कमल यहाँ खिल कर अपनी सुगंघ बिखेरते रहेंगे.
आप की इतनी सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से आप का अभिवादन
ख़ूबसूरत रचना
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मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
टूट के बिखर न जाओ शीशे की तरह,
मोम से दिल को आज पत्थर बना लिया।
बंहुत ही सु्न्दर अभिव्यक्ति ।
सुंदर एवं सार्थक विचार।
( Treasurer-S. T. )
"जीने का राज़ , मोहब्बत में पा लिया.
अपनों के दर्द को, अपना बना लिया"
बहुत सुन्दर!
जीने का राज़ , हमने मोहब्बत में पा लिया।
दुनिया का दर्द, हमने जिगर में बसा लिया।।
bahut he achhi rachna share ki aapne...
जीने का राज़ , मोहब्बत में पा लिया.
अपनों के दर्द को, अपना बना लिया.
सुन्दर पंक्तियाँ गार्गी जी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बेहतरीन अशआर...सुंदर ग़ज़ल
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